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Language Teaching Method | भाषा शिक्षण विधियाँ

 Language Teaching Method | भाषा शिक्षण विधियाँ

हिंदी भाषा शिक्षण के लिए निम्न विधियों का जाना आवश्यक है जो इस प्रकार से हैं।

Language Teaching Method


1. प्रत्यक्ष  विधि - पामेर एवं फ्रीज

- इस विधि की उत्पत्ति 19वीं सदी में यूरोप में हुई। पामेर एवं फ्रिज ने अंग्रेजी भाषा के शिक्षण के लिए इस विधि का सबसे पहले सफल प्रयोग किया। अतः इन्हें इस विधि का जनक कहते हैं।

- इस विधि का भारत में आगमन एक नवीन विधि के रूप में बहुत सारे विरोध के बाद सन् 1908 में हुआ।

- भारत के तीन महानगरों में 1908 में कोलकाता में टिपिंग द्वारा, मुंबई में ट्रेजर द्वारा तथा  चेन्नई में एड्स व श्रीनिवासन द्वारा आगमन हुआ।

- इस विधि में भाषा का शिक्षण उसी भाषा में किया जाता है जो भाषा सीखानी होती है अर्थात् अंग्रेजी का अंग्रेजी भाषा में, संस्कृत का संस्कृत भाषा में तथा हिंदी का हिंदी भाषा में शिक्षण किया जाता है।

- इस विधि में मातृभाषा का प्रयोग वर्जित माना जाता है। अध्यापक कक्षा में आते हैं और नवीन भाषा के छोटे-छोटे पदों को बोलते हैं। जिन पदों को बोलते हैं उन्हें सहायक सामग्री के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। जैसे- पेन को दिखाते हुए- This is a pen  🖊

- जिन पदों को अध्यापक सहायक सामग्री के माध्यम से स्पष्ट नहीं कर पाता है उन्हें हाव भाव एवं नाटक अभिनय करते हुए स्पष्ट करने का प्रयास करता है।  जिससे विद्यार्थी शिक्षण में रुचि लेते हैं।

- जब अध्यापक सभी पदों को बोल देता है तो विद्यार्थियों को बोलने का आदेश देता है। विद्यार्थी जैसे भी बोलना चाहे बोल सकते हैं। अर्थात् व्याकरण संबंधी अशुद्धियों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

- विद्यार्थी अभ्यास से सरलता से नवीन भाषा को बोलना सीख जाते हैं अतः इसे सहज अथवा सुगम पद्धति भी करते हैं। 

- इस विधि में भाषाई कौशलों का विकास व्यवहारिक एवं प्राकृतिक रूप से किया जाता है। अतः इस विधि को प्राकृतिक विधि भी कहते हैं। 

-इस विधि से बालक को पहले सुनना- बोलना- पढ़ना- लिखना सिखाया जाता है। 

- वर्तमान में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में एवं संस्कृत विद्यालय में इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग किया जा रहा है।

इस विधि में मातृभाषा का प्रयोग किये बिना बालक को सीधे नवीन भाषा,  बोलना सिखा दिया जाता है। अर्थात् मातृभाषा की मध्यस्थतता नहीं होती है। इस विधि का माध्यम संभाषण है। अतः इसे संभाषण विधि भी कहते हैं।


प्रत्यक्ष विधि के गुण-

  • बाल केंद्रित विधि है। 
  • मनोवैज्ञानिक विधि है। 
  • इस विधि से बालक सरलता से नवीन भाषा को बोलना सीख जाता है। 
  • व्याकरण संबंधी अशुद्धियों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। अतः बालक का आत्मविश्वास बढ़ जाता है। 
  • रोचक विधि है। 
  • इस विधि में अध्यापक और विद्यार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं। 
  • भाषाई कौशलों का विकास सरलता से हो जाता है। 
  • बालक को नवीन भाषा सिखाने के लिए (संस्कृत व अंग्रेजी) सर्वश्रेष्ठ विधि है।  
  • सहायक सामग्री के प्रयोग से शिक्षण प्रक्रिया को रोचक बनाया जाता है। 
  • व्याकरण अनुवाद विधि के दोषों को दूर करने में अत्यंत उपयोगी विधि है। 
  • प्राथमिक स्तर पर नवीन भाषा सिखाने के लिए सर्वाधिक प्रयोग होने वाली विधि है।

प्रत्यक्ष विधि के दोष-

  • अध्यापक को बहुत अधिक क्रियाएं करनी होती है। 
  • इस विधि से बालक सुनना और बोलना तो सीख जाता है किंतु पढ़ना और लिखना सीख नहीं पाता है।
  • लेखन कला का विकास नहीं हो पाता है।
  • व्याकरण संबंधी अशुद्धियां दूर नहीं हो पाती है। 
  • "ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी" का कथन इस विधि के लिए उपयुक्त है। 
  • उच्च स्तर पर अनुपयोगी विधि है। 
  • कमजोर एवं मंदबुद्धि बच्चों के लिए अनुपयोगी विधि है। 
  • योग्य एवं अनुभवी अध्यापक की आवश्यकता होती है। 
  • भारतीय संस्कृति के अनुकूल उपयोग विधि नहीं है।

2.  द्वि-भाषा विधि-


- जब अध्यापक नवीन भाषा को सिखाने के लिए शिक्षण के क्षेत्र में एक साथ दो भाषाओं का प्रयोग करता है तो इसे द्विभाषा विधि करते हैं।

- इस विधि में अध्यापक श्यामपट्ट पर मातृभाषा के एक वाक्य को भी लिखता है और फिर अनुवाद नवीन भाषा में कर देता है किंतु पूरे वाक्य का अनुवाद ना करके केवल उसी शब्द का अनुवाद करता है जिसे वह नवीन भाषा में सिखाना चाहता है।
जैसे- यह एक आम है।
अनुवाद- यह एक Mango है।

- अहिंदी भाषाई राज्य में हिंदी सिखाने के लिए यह अत्यंत उपयोगी विधि मानी जाती है।

- यह एक व्यवहारिक विधि है जिसका प्रयोग आम बोलचाल की भाषा में भी किया जाता है।


3. व्याकरण अनुवाद/ भण्डारकर विधि - गोपाल कृष्ण भण्डारकर


- इस विधि को भंडारकर विधि व्याकरण विधि/ भण्डारकर विधि  भी कहते हैं।

- प्राचीन काल में भारतीय विधि के रूप में इस विधि का प्रयोग किया जाता था। 

-लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति 1835 ईस्वी के बाद इस विधि का नवीनीकरण कर दिया गया।
 
- भारत में इस विधि का नवीनीकरण करने का कार्य गोपाल राम कृष्ण भंडारकर ने किया अतः इस विधि को भंडारकर विधि भी कहते हैं।

- भंडारकर ने इस विधि पर आधारित दो पुस्तकों की रचना की जो इस प्रकार से हैं ।  (1) मार्गनिर्दशिका (2) संस्कृतमन्दिरान्त ।

- इस विधि में मातृभाषा से नवीन भाषा में एवं नवीन भाषा से मातृभाषा में अनुवाद करना सिखाया जाता है। अर्थात् भाषा एक से भाषा दो में एवं भाषा दो से भाषा एक में अनुवाद करना सिखाते हैं।

- इस विधि में व्याकरण संबंधी अशुद्धियों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है। अतः विद्यार्थियों की व्याकरण संबंधी अशुद्धियाँ  दूर हो जाती है किंतु मनोबल कम हो जाता है। 

- यह अध्यापक केंद्रीय विधि है। 

- इसका वर्तमान में स्थान प्रत्यक्ष विधि ने ले लिया है। 

- यह वर्तमान में अप्रभावी विधि है।



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