Verse Teaching Methods | पद्य शिक्षण की विधियाँ
प्राथमिक स्तर की विधियाँ -
(1) गीत विधि/ रसास्वादन विधि/ प्रदर्शन विधि -
- इस विधि का प्रतिपादन माॅरिया माण्टेसरी (इटली) के द्वारा किया गया।
- इस विधि को पूर्व प्राथमिक स्तर पर गीत विधि, प्राथमिक स्तर पर अभिनय/ प्रदर्शन विधि-( फ्राॅबेल व जैकाब एल. मोरेनो) उच्च प्राथमिक स्तर पर इस विधि को रसास्वादन विधि भी करते हैं।
- यह पद्य शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है
- इस विधि में अध्यापिका कविता का सुर, लय-गति, ताल आदि का ध्यान रखते हुए हाव भाव अथवा प्रदर्शन/ अभिनय करते हुए सस्वर वाचन करती है।
- विद्यार्थी ध्यानपूर्वक सुनते हैं और रस के स्वाद की अनुभूति करते हैं।
- इस विधि से पद्य शिक्षण के समस्त उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है अतः पद्य शिक्षण में सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली विधि भी यही है।
- यह विधि रासा अनुभूति के लिए सर्वाधिक प्रयोग होने वाली विधि है।
(2) अभिनय विधि- फ्राॅबेल व जैकाब एल. मोरेनो
- इस विधि में अध्यापिका या अध्यापक कविता का अभिनय करते हुए लय-गति, सुर-ताल आदि का ध्यान रखते हुए हवाभाव के साथ कविता का सस्वर वाचन करती है या करता है।
- विद्यार्थी ध्यानपूर्वक सुनते हैं और अपने अध्यापक या अध्यापिका को ध्यान से देखते हैं और सुनते हैं।
- इस प्रक्रिया के बाद अध्यापक विद्यार्थियों से इस कविता का अभिनय करते वाचन करने के लिए कहता है विद्यार्थी कविता का वाचन लय-गति, सुर-ताल आदि को ध्यान रखते हुए सस्वर वाचन करते हैं।
(3) भाषा अनुवाद विधि-
- भाषा अनुवाद विधि में मातृभाषा से नवीन भाषा एवं नवीन भाषा से मातृभाषा में अनुवाद करना सिखाया जाता है।
- यह विधि एक भाषा से दूसरी भाषा को सिखाने का माध्यम है।
- भाषा-1 से भाषा-2 में एवं भाषा-2 से भाषा-1में अनुवाद करना सिखाते हैं।
- इस विधि में अध्यापन संबंधी अशुद्धियों पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है। अतः विद्यार्थियों की व्याकरण संबंधी अशुद्धियों दूर हो जाती है, किंतु मनोबल कम हो जाता है।
- इस विधि का प्रयोग केवल अध्यापक द्वारा ही किया जा सकता है। इसका वर्तमान स्थान प्रत्यक्ष विधि ने ले लिया है। अतः वर्तमान में प्रभावी विधि मानी जाती है।
माध्यमिक स्तर की विधियाँ -
(1) व्याख्या विधि -
- इस विधि को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें - Click Here
(2) खण्डान्वय की विधि - सुकरात (सूत्र- खण्ड + 2 - 1 + अन्वय )
- इस विधि की उत्पत्ति सुकरात के प्रश्नपत्र विधि से हुई है इसका जनक सुकरात को माना जाता है।
- इस विधि में पद्य को दो भागों में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक भाग का अध्यापक सस्वर वाचन करता है। फिर भावार्थ स्पष्ट करता है, भावार्थ स्पष्ट करने के बाद प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करके अगले पद का विकास करता है और उसका भी सस्वर वाचन करके भावार्थ स्पष्ट करता है। फिर दोनों पदों को सम्मिलित करके पूरे पद्य का एक साथ भावार्थ स्पष्ट करता है। जिससे विद्यार्थियों को पद्य के भाव का बोध हो जाता है।
- इस विधि से रसानुभूति नहीं हो पाती है अतः वर्तमान में यह विधि का प्रभावी है।
(3) दण्डान्वय विधि - सूत्र- दण्ड - 2 + 1 + अन्वय
- इस विधि की उत्पत्ति सुकरात के समस्या समाधान विधि से हुई है। क्योंकि समस्याओं का समाधान व्याख्या के माध्यम से किया जाता है। अतः इसे व्याख्या विधि भी करते हैं।
- इस विधि में अध्यापक प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए किसी अन्य पाठ से संबंध स्थापित करते हैं। फिर दोनों की एक साथ व्याख्या करके प्रकरण से संबंधित समस्याओं का समाधान कर देते हैं।
- यह गद्य शिक्षण की विधि है इसका प्रयोग कभी कभी पद्य में भी किया जाता है।
(4) टीका विधि -
- टीका विधि का शाब्दिक अर्थ होता है किसी भी भाषा की व्याख्या करना या दूसरे शब्दों में कहें कि किसी अन्य ग्रंथ को व्याख्या के रूप में प्रस्तुत करना।
- संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। टीका विधि का प्रयोग ज्यादातर संस्कृत भाषा में किया जाता है। मुख्य रूप से सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं।
- इस विधि को प्रवचन विधि भी कहते है । → टीका विधि में शब्द की उत्पत्ति - संधि, समास, कारक, प्रकृति, विलोम आदि को समन्वित करके पढ़ाया जाता है । → यह समन्वित विधि का रूप है।
(5) स्पष्टीकरण विधि -
- स्पष्टीकरण विधि में शब्दों की तुलना करके वाक्य के प्रयोग किया जाता है। इस विधि में तुलना, वाक्य प्रयोग, अन्तःकरण, प्रसंग, संदर्भ, व्याख्या आदि शब्दों का प्रयोग किया है।
उच्च स्तर की विधियाँ -
(1) व्यास विधि- श्रीधर व्यास
- यह विधि समीक्षा विधि जैसी ही एक विधि है। जिसमें अध्यापक कविता का संक्षिप्त विवरण, सस्वर वाचन से पहले ही प्रस्तुत कर देता है। फिर कविता का सस्वर वाचन करता है और विद्यार्थियों के माध्यम से भावार्थ जानने का प्रयास करता है।
- आशु कवि सामान्यतयाः इसी विधि का प्रयोग करते हैं और उपयोग करते हैं।
(2) तुलना विधि -
- इस विधि में मूल कविता को किसी अन्य कविता के साथ तुलना करके स्पष्ट किया जाता है।
अध्यापक मूल कविता का वाचन करता है उसका भावार्थ स्पष्ट करता है और फिर मूल कविता के समान भावों वाली कोई अन्य कविता "समभावी पद" के माध्यम से प्रस्तुत करता है।
- फिर मूल कविता के साथ उसकी तुलना करता है और विद्यार्थियों से भी तुलनात्मक प्रश्न करता है जिससे विद्यार्थी मूल कविता का तुलनात्मक ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
- पद्य शिक्षण में इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।
(3) समीक्षा विधि-
-इस विधि में अध्यापक कविता का सस्वर वाचन करता है फिर भावार्थ के माध्यम से उसे पूरी तरह से स्पष्ट कर देता है।
- अंत में विद्यार्थियों से कविता की समीक्षा कराता है जिससे प्रदान किए ज्ञान का मूल्यांकन किया जा सकता है।
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