अभिक्रमित अनुदेशन विधियाँ | Programming Instruction Methods -1954 ब्रुसहस फ्रेडरिक स्किनर- अमेरिका
विस्तार- अभिक्रमित अनुदेशन विधि का विचार सबसे पहले सुकरात ने दिया था। 1913 में सुकरात के विचारों के आधार पर थार्नडाइक ने आंशिक क्रिया नियम प्रतिपादित किया । स्वगति के सिद्धांत के आधार पर शिडनी एल.प्रेसे ने 1920 ई. में शिक्षण मशीन का निर्माण किया।
- शिक्षण मशीन की क्रियाविधि के आधार पर स्किनर ने 1938 में क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत प्रतिपादित किया।
- क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत के आधार पर स्किनर ने 1954 में अभिक्रमित अनुदेशन विधि का निर्माण किया।
- यह एक व्यक्तिगत शैक्षिक तकनीक है जिसका प्रयोग अनुदेशन प्रणाली के रूप में किया जाता है।
- इस विधि का सबसे पहले प्रयोग पशु चूहे पर किया।
- यह विधि ज्ञात से अज्ञात शिक्षण सूत्र पर आधारित है जिसमें मुद्रित सहायक सामग्री का प्रयोग किया जाता है।
- इस विधि का भारत में आगमन 1963 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंट्रल पेडागॉजिकल गार्डन में हुआ । जहां विज्ञान विषय के शिक्षण के लिए सबसे पहले प्रयोग किया गया।
- 1962 में एनसीईआरटी ने इस विधि के आधार पर दिल्ली में दो सप्ताहिक शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किये।
इस विधि के सिद्धांत :-
- छोटे-छोटे पदों का सिद्धांत
- क्रमबद्धता का सिद्धांत
- क्रियाशीलता का सिद्धांत
- स्वगति का सिद्धांत
- तात्कालिक प्रतिपुष्टि का सिद्धांत/ पुनर्बलन का सिद्धांत
इन पांचों सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत स्व-गति का सिद्धांत है।
अभिक्रमित अनुदेशन विधि के प्रकार:-
मुख्य रूप से इसके 5 प्रकार हैं जो निम्न प्रकार से हैं-
- रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि - स्किनर व जेम्स ली हालैंड
- शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि - नॉर्मन एन क्राउडर
- अवरोही/ मैथेटिक्स अभिक्रमित अनुदेशन विधि - थॉमस एफ गिलबर्ट
- कंप्यूटर सहायक अभिक्रमित अनुदेशन विधि - जॉन स्टालुरो
- स्व-निर्देशित अभिक्रमित अनुदेशन विधि - बीएस कैलर
शैक्षिक दृष्टि से अभिक्रमित अनुदेशन विधि के तीन प्रकार हैं-
अभिक्रमित अनुदेशन विधि
1. रेखीय/आरोही अभिक्रमित अनुदेशन विधि | 2. शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि | 3. अवरोही/ मैथेटिक्स अभिक्रमित अनुदेशन विधि |
---|---|---|
(1) जनक- स्किनर व जेम्स ली हालैंड सन- 1954 | (1) जनक - नॉर्मन एन क्राउडर सन- 1960 | (1) जनक - थाॅमस एफ गिलबर्ट सन्- 1962 |
(2) प्रश्न- निबंधात्मक व रिक्त स्थान | (2) प्रश्न - वस्तुनिष्ठ | (2) प्रश्न - प्रायोगिक |
(3) उद्देश्य- निम्न स्तरीय उद्देश्य की पूर्ति या प्राप्ति | (3) उद्देश्य - मध्य स्तरीय उद्देश्यों की प्राप्ति | (3) उद्देश्य - उच्च स्तरीय उद्देश्यों की प्राप्ति |
(4) पदों का आकार- छोटा | (4) पदों का आकार - बड़ा | (4) पदों का आकार- सामान्य |
(4) पदों का संख्या - अधिक | (4) पदों का संख्या - कम | (4) |
(5) उपयोगी- कमजोर को मंदबुद्धि बालक | (5) उपयोगी - प्रतिभाशाली बालक | (5) उपयोगी- समस्यात्मक बालकों के लिए |
(6) अनुक्रिया- बाह्य अनुक्रिया | (6) अनुक्रिया- आंतरिक अनुक्रिया पर जोर | (6) अनुक्रिया- क्रियात्मक |
(7) दोष- नकल करने की प्रवृत्ति का विकास | (7) दोष- सही उत्तर की ओर संकेत | (7)दोष - व्यक्तिगत विभिन्नता पर आधारित |
1. रेखीय/आरोही अभिक्रमित अनुदेशन विधि- स्किनर व जेम्स ली हालैंड
सोपान -
- शिक्षण
- अभ्यास
- परीक्षण
परिभाषा - स्किनर के अनुसार - "जब पाठ्य-वस्तुओं को क्रमबद्ध रूप से छोटे-छोटे पदों के रूप में एक रेखीय क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तो इसे रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन भी कहते हैं।"
क्रिया विधि- विद्यार्थी को प्रथम पद पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है फिर रिक्त स्थान में उससे एक निबंधात्मक अथवा रिक्त स्थान पूर्ति संबंधी प्रश्न दिया जाता है, जिसका उत्तर उसे लिखकर देना होता है । यदि उत्तर सही हो जाता है तो उसे सकारात्मक प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है और वह अगले पद का अध्ययन करता है, यदि उत्तर गलत हो जाता है तो उसे नकारात्मक प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है । और उसे पूर्व पद का अध्ययन करना होता है।
गुण -
- सबसे सरल प्रकार है।
- इस विधि से कमजोर एवं मंदबुद्धि बच्चे भी सीख जाते हैं।
- अकेले उपस्थित अध्यापक द्वारा भी सभी कक्षाओं का संचालन किया जा सकता है।
- इस विधि से विद्यार्थी शिक्षण में रुचि लेते हैं।
- लेखन कला का भी विकास होता है।
- बाल केंद्रित विधि है।
- मनोवैज्ञानिक विधि है।
- इस विधि से विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति का विकास होता है।
- विद्यार्थी में खोज करने की प्रवृत्ति भी विकसित होती है अर्थात ये वैज्ञानिक विधि है।
- सभी विद्यार्थी स्वगति से सीखते हैं विद्यार्थियों पर समय का बंधन नहीं होता है।
- सभी विद्यार्थी सक्रिय रहते हैं।
- माध्यमिक स्तर तक उपयोग विधि है।
दोष -
- प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए अनुपयोगी विधि है।
- विद्यार्थियों में नकल करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
- निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण का अभाव होता है।
- यदि विद्यार्थी का उत्तर गलत हो जाता है तो उसे गलत क्यों है? उसए इसके कारणों का पता नहीं चल पाता है।
- निम्न स्तरीय उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
- अध्यापक की उपेक्षा की गई है।
2. शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि- नार्मन एन. क्राउडर
परिभाषा- " जब पाठ्य वस्तुओं को क्रमबद्ध, तार्किक क्रम, शाखाओं के रूप में व्यवस्थित किया जाता है तो इसे शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि कहते हैं।"
सोपान-
- प्रस्तुतीकरण
- निदान
- उपचार
क्रियाविधि- विद्यार्थी को प्रथम पद पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है फिर रिक्त स्थान में उससे वस्तुनिष्ठ प्रश्न दिया जाता है, जिसके तीन विकल्प होते हैं यदि विद्यार्थी सही विकल्प का चयन करेगा तो वह अगले पद का अध्ययन करेगा और अगले रिक्त स्थान में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देगा यदि गलत विकल्प का चयन करेगा तो उसे उस गलत पद का अध्ययन करना होता है।
जिससे उसे यह पता चल जाता है कि उसका उत्तर गलत क्यों है?
गुण:-
- विद्यार्थी में तार्किक क्षमता का विकास होता है।
- प्रतिभाशाली बालक के लिए उपयोगी विधि है।
- विद्यार्थियों को व्यापक ज्ञान प्राप्त होता है।
- व्यवहारिक विधि है।
- निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण विधि है।
- यदि विद्यार्थी का उत्तर गलत हो जाता है तो गलत क्यों है? इसके कारणों का पता उसे चल जाता है।
- विद्यार्थियों में खोज करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
- रटने की प्रवृत्ति कम होती है।
- मध्य स्तरीय उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
- उच्च स्तर पर उपयोगी विधि है।
दोष:-
- कमजोर एवं मंदबुद्धि बच्चों के लिए अनुपयोगी विधि है।
- पाठ्यक्रम समय से समाप्त नहीं हो पाता है।
- इस क्रम में पाठ्यवस्तु को व्यवस्थित करना बहुत ही कठिन कार्य है।
- अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या उत्पन्न होती है।
- लेखन कला का विकास नहीं हो पाता है।
- शिक्षण प्रक्रिया बीच में ही बाधित हो जाती है।
- रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन विधि की अपेक्षा कठिन प्रकार है।
3. अवरोही/मैथेटिक्स अभिक्रमित अनुदेशन विधि- थॉमस एस. गिलबर्ट
सोपान -
- प्रदर्शन
- अनुबंधन
- उन्मुक्ति
गुण -
- इस विधि का निर्माण गणित शिक्षण के लिए किया गया था किंतु विज्ञान शिक्षण में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
- इसमें उच्च स्तरीय उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
- समस्यात्मक बालकों के लिए उपयोगी विधि है।
- इस विधि में तीन सोपान होते हैं।
Read More
- Compose Teaching Methods: रचना शिक्षण की विधियां
- Science and Maths Teaching Method
- Social Study Teaching Methods | सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियाँ
- गद्य शिक्षण की विधियां | Prose Teaching Methods गाने
- Verse Teaching Methods | पद्य शिक्षण की विधियाँ
- भाषा शिक्षण की विधियां | Language Teaching Methods
- Drama Teaching Methods | नाटक शिक्षण विधि
- कहानी शिक्षण की विधियां | Story Teaching Method
- व्याकरण शिक्षण की विधियाँ | Grammar Teaching Method
- Hindi Bhasha Teaching Method | हिंदी भाषा शिक्षण की विधियां
- पर्यवेक्षित अध्ययन विधि/निरीक्षित अध्ययन विधि | Supervised Study Method
- हरबर्टीय विधि/हरबर्ट की पंचपदीय विधि |Harbertiya Method/Harbert Panchpadi Teaching Method
- Purpose method | प्रयोजना विधि
- दल शिक्षण/टीम शिक्षण विधि
- अभिक्रमित अनुदेशन विधियाँ
- इकाई विधि/Unit Method
- सूक्ष्म शिक्षण विधि/Micro Teaching Method
- व्याख्यान/कथन/प्रवचन विधि/Lecture/Narration/Discourse Teaching Method
0 Comments