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Social Study Teaching Methods | सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियाँ

Social Study Teaching Methods | सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियाँ

Social Study Teaching Methods | सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियाँ


सामाजिक अध्ययन शिक्षण विधियाँ

सामाजिक अध्ययन की उत्पत्ति 19वीं सदी में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।

·         1892 ईसवी में अमेरिका के मेडिसिन डिस्कॉन्सिन कॉन्फ्रेंस में सबसे पहले सामाजिक अध्यन शब्द का प्रयोग किया गया

·         सन् 1893 ईस्वी में अमेरिका में सामाजिक अध्ययन को एक विषय के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई

·         सामाजिक अध्ययन की उत्पत्ति के समय समें तीन विषय इतिहास, राजनीतिशास्त्र व अर्थशास्त्र शामिल थे

·         1911 ईस्वी में अमेरिका के प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री- जॉन डी.वी. ने ज्ञान के एकीकरण का सिद्धांत सामाजिक अध्ययन के लिए निर्मित किया

·         1911 ईस्वी में अमेरिका की कमेटी ऑफ टेन" ने सामाजिक अध्ययन में एक और विषय समाजशास्त्र शामिल कर दिया

·         सन 1916 ईस्वी में अमेरिका की राष्ट्रीय शिक्षा परिषद ने सामाजिक अध्ययन को माध्यमिक स्तर तक के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल कर दिया

·         सामाजिक अध्ययन के विकास के लिए अमेरिका में सन् 1934 ईस्वी में सामाजिक अध्ययन आयोग का गठन किया गया

·         भारत में सामाजिक अध्ययन का आगमन डॉ जाकिर हुसैन समिति की अनुशंसा के आधार पर औपचारिक रूप से सन् 1930 ईस्वी में बुनियादी शिक्षा के अंतर्गत हुआ और इसे कक्षा 1 से 8 तक शामिल किया गया

·         सन 1948 में डॉ राधाकृष्णन द्वारा गठित विश्वविद्यालय आयोग/डॉ. राधाकृष्णन आयोग ने सामाजिक अध्ययन को माध्यमिक स्तर तक के पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्देश दिया।

·         सन् 1952-53 में गठित मुदालियर आयोग /माध्यमिक शिक्षा आयोग ने सामाजिक अध्ययन को माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य रूप से शामिल करने का निर्देश दिया।

·         सन् 1955 में भारत के माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपने लेख- ‘10 वर्षीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ (The curriculum for ten year a Framework) के माध्यम से प्रायोगिक रूप में सामाजिक अध्ययन को 10 वर्षों के लिए एक अनिवार्य विषय के रूप में माध्यमिक स्तर तक के पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया।

·         सन् 1968 में इंदिरा गांधी द्वारा गठित ‘प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ ने अपने लेख- “प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यचर्या एक रूपरेखा” (The curriculum for Primary and Secondary education a Framework) के माध्यम से सामाजिक अध्ययन को एक अनिवार्य विषय के रूप में माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया।

·         भारत की माध्यमिक शिक्षा परिषद ने सामाजिक अध्ययन में 1955 में एक और विषय भूगोल को शामिल कर दिया।

·         सामाजिक अध्ययन को पाठ्यक्रम में, (i) प्राथमिक स्तर पर- ‘पर्यावरण अध्ययन’ के रूप में, (ii) उच्च प्राथमिक स्तर पर ‘सामाजिक अध्ययन’ के रूप में, एवं (iii) माध्यमिक स्तर पर- ‘सामाजिक विज्ञान’ के रूप में शामिल किया गया है।

·         वर्तमान में सामाजिक अध्ययन में अमेरिका में 108 विषय शामिल किए गए हैं।

 

परिभाषाएं

·         एम. पी. मोफात के अनुसार- “ सामाजिक अध्ययन समाज द्वारा, समाज का, समाज के लिए अध्ययन है।“

·         एम. पी. मोफात के अनुसार- “ जीने की कला बड़ी सुंदर कला है इसकी जानकारी सामाजिक अध्ययन से प्राप्त होती है।“

·         बंकिघम के अनुसार- “ सामाजिक अध्ययन मानव के ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं सामाजिक संबंधों व अंतर्संबंधों का अध्ययन है।“

·         बैस्ले के अनुसार- “ सामाजिक अध्ययन का विषय क्षेत्र समाज है।“

 

सामाजिक शिक्षण विधियां

1.       किण्डर गार्डन विधि- आगस्टस फ्रेडरिक फ्रोबेल/ बाल उद्यान विधि 1837 जर्मनी

·         फ्रोबेल ने जर्मनी के ब्लैकन बर्ग (कॉनबर्ग) नामक शहर में 4 से 8 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए एक विद्यालय स्थापित किया। जिसे सन् 1839 में किंडरगार्टन नाम दिया गया।

·         किंडर गार्डन जर्मन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ - बच्चे या बालक और गार्डन का अर्थ बगीचा है। जिस प्रकार माली बगीचे में पौधों को जल से सिंचित करके विकास करता है उसी प्रकार अध्यापक रूपी माली विद्यार्थी रूपी पौधों का विद्यालय रूपी, बगीचे में ज्ञान रूपी जल से सिंचित कर विकास करता है।

·         यह विधि खेल पर आधारित विधि है। जिसमें गीत, गति एवं रचना के विकास पर सर्वाधिक जोर दिया है।

·         स्वगति के सिद्धांत को इस विधि के आधार पर मान्यता प्राप्त हुई है।

·         इस विधि में समय सारणी का विरोध किया गया है फिर भी एक कालांश की अधिकतम अवधि 20 से 25 मिनट निश्चित की गई है।

·         यह विधि दंड का विरोध करती है, विद्यार्थी के प्रत्येक अच्छे कार्य पर उपहार प्रदान किया जाता है।

·         इसमें 20 प्रकार के उपहारों का प्रयोग किया जाता है। यह महिला अध्यापिकाओं की नियुक्ति पर विशेष जोर देती है।

·         खेल का शिक्षा के क्षेत्र में सबसे पहले प्रयोग इसी विधि में किया गया है। सहायक सामग्री का सबसे पहले प्रयोग इसी विधि में किया गया।

2.   डाल्टन विधि / ठेका विधि हैलेन पार्कस् हर्टस् 1920 अमेरिका

·         इस विधि का निर्माण अमेरिका के डाल्टन नगर नामक शहर में किया गया। अत: इसे डाल्टन विधि के नाम से जाना जाता है।

·         यह विधि ठेकेदारी प्रथा पर आधारित है जिसमें निश्चित कार्य को, निश्चित समय में व निश्चित संसाधनों के माध्यम से हल कराया जाता है।

·         इस विधि में ठेके की अवधि 1 से 3 माह निर्धारित की गई है। एक माह में कुल 20 दिन निश्चित किए गए हैं। प्रत्येक माह में 4 सप्ताह निश्चित किए गए हैं, प्रत्येक सप्ताह में 5 दिन विद्यार्थी के लिए निश्चित है। और सप्ताह के अंतिम दिन अध्यापक विद्यार्थियों के 5 दिन के कार्यों का मूल्यांकन करता है। और सुझाव देता है। जब ठेके की अवधि समाप्त हो जाती है तो अध्यापक संपूर्ण कार्य का मूल्यांकन करता है। और निष्कर्ष निकालता है।

·         यह विधि 9 वर्ष से अधिक उम्र के बालकों के लिए ही उपयोगी है। वर्तमान में इंजीनियरिंग एवं तकनीकी क्षेत्रों में प्रयोग की जाने वाली सेमेस्टर प्रणाली इसी विधि पर आधारित है।

3.   माण्टेसरी विधि मॉरिया माण्टेसरी- 1907 इटली

·      मांटेसरी ने 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए इटली में एक विद्यालय स्थापित किया जिसे बालघर नाम दिया गया। इस विद्यालय में ही इस विधि का निर्माण हुआ।

·      इस विधि में 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को सिखाने के लिए ज्ञानेंद्रियों के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया। (१) आंखों के लिए विभिन्न रंगों वाली गोलियों का प्रयोग,(२) कान के लिए विभिन्न प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न करने वाली घंटियों का प्रयोग, (३) नाक के लिए विभिन्न सुगंध वाले तरल पदार्थों का प्रयोग, (४) जीप के लिए विभिन्न स्वाद वाले पेय पदार्थ का प्रयोग तथा (५) त्वचा के लिए विभिन्न प्रकार की खुरदरी व चिकने वस्तुओं का प्रयोग किया जाता था। जिससे ज्ञानेंद्रियों को प्रशिक्षित कर शिक्षा प्रदान की जाती थी।

·      इस विधि में भाषाई कौशलों के विकास का क्रम सुनना - बोलना लिखना - पढ़ना के रूप में स्वीकार किया गया ।

4.   ड्रेकाली विधि अमेरिका

·         यह व्यक्तिगत विभिन्नता पर आधारित विधि है। जिसका निर्माण ड्रेकाली ने मानसिक रूप से अवसाद ग्रसित 4 से 19 वर्ष तक के बच्चों के लिए किया था।
·         इस विधि का मुख्य उद्देश्य इन बालकों को जीवन यापन हेतु योग्य बनाना था।
·         इस विधि में एक विशेष प्रकार की समय सारणी का निर्माण किया जाता है जिसमें प्रातः कालीन भाषा की शिक्षा प्रदान की जाती है एवं सायं कालीन गीत, संगीत व खेल का प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे विद्यार्थी किसी ना किसी क्षेत्र में सफल हो जाते हैं।
·         वर्तमान में मूक-बधिर एवं मंदबुद्धि विद्यालय में इस विधि का सर्वाधिक प्रयोग किया जा रहा है।

5.   बिनेटिका विधि- कार्लटन वाशबर्न- अमेरिका

·         इस विधि का निर्माण अमेरिका ‘बिनेट' नामक शहर किया गया अतः इसे बिनेटिका विधि कहा जाता है।
·         इस विधि में विद्यार्थियों को दैनिक रूप से कार्य प्रदान करने के लिए एक व्यूह पत्र/ कार्यभार पत्र का प्रयोग किया जाता है जिसमें प्रदान किए गए कार्य का लेखा-जोखा रखा जाता है। यह विधि पूर्व प्राथमिक स्तर पर अत्यंत उपयोगी विधि मानी जाती है। उच्च प्राथमिक स्तर तक विद्यालयों में प्रयोग की जाने वाली विद्यार्थी डायरी इसी विधि पर आधारित है।

6.   ह्यूरिस्टिक/ खोज/ अन्वेषण विधि हेनरी एडवर्ड आर्मस्ट्रांग 1859 इंग्लैंड

·         ह्यूरिस्टिक शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘Heurisco' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ “मैं खोजें हूं।“ , “मैंने खोज लिया है।“ होता है। अर्थात् विद्यार्थी में खोज करने की प्रवृत्ति के विकास के लिए यह विधि निर्मित की गई।
·         लंदन के इंपीरियल कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्रोफेसर एच.. आर्मस्ट्रांग ने रसायन विज्ञान के लिए इस विधि का निर्माण किया।
·         वर्तमान में विज्ञान, गणित एवं पर्यावरण अध्ययन में इस विधि का प्रयोग किया जाता है। यह विधि करके सीखने पर आधारित है। जिसमें अध्यापक प्रकरण को प्रस्तुत करते हैं। और विद्यार्थी शांति पूर्वक सक्रिय रहकर हल खोजते हैं। जिससे उनका मानसिक विकास होता है। इस विधि में 4 सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है। (1) स्वतंत्रता का सिद्धांत (2) रूचि का सिद्धांत (3) मानसिक विकास का सिद्धांत (4) क्रियाशीलता का सिद्धांत
·         इस विधि के समर्थन में जॉन फ्रेडरिक हरबर्ट ने लिखा है कि ‘सर्वाधिक खोजी प्रवृत्ति का विकास ह्यूरिस्टिक विधि से होता है।

सोपान

(1) प्रकरण का चयन

(2) प्रस्तुतीकरण

(3) आंकड़ों/ तथ्यों का संकलन

(4) मूल्यांकन

(5) प्रतिवेदन

गुण-

§  विद्यार्थी में खोजी प्रवृत्ति का विकास करने की सबसे सर्वश्रेष्ठ विधि है।
§ विद्यार्थी स्वतंत्र रहते हैं।
§  गृहकार्य देने की आवश्यकता नहीं है।
§  भविष्य में अनुसंधान करने में सरलता होती है।
§  प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
§  विज्ञान शिक्षण की अत्यंत प्रयोग विधि है।
§  बाल केंद्रित एवं वैज्ञानिक विधि है।
§  विद्यार्थी स्वयं समस्या का हल करना सीख जाते हैं।
§  आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

दोष-

§  प्राथमिक स्तर पर अनुपयोगी भी है।

§  खर्चीली विधि है।

§  अध्यापक की भूमिका गौण में रहती है।

§  समय बहुत अधिक लगता है।

§  सभी विद्यार्थी समस्या का हल खोजने में रूचि नहीं रखते हैं।

§  केवल खोज करने से संबंधित प्रकरण का भी अध्ययन इस विधि से किया जा सकता है।

 

7.   बुनियादी शिक्षा मोहनदास करमचंद गांधी – 1937 वर्धा (महाराष्ट्र)

·         महाराष्ट्र के वृद्धा नामक स्थान पर सन 1937 में महात्मा गांधी ने डॉक्टर जाकिर हुसैन की समिति की अनुशंसा के आधार पर इस विधि का निर्माण किया।

·         इस विधि में 7 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी।

·         इस विधि में शिक्षा के साथ-साथ व्यवसायिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता था। जिससे बालक आत्मनिर्भर हो सके। अतः पाठ्यक्रम में शैक्षिक विषयों के साथ-साथ कास्ट-कला, पुस्तक-कला, चित्र-कला, कताई, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई व खेल आदि को शामिल किया गया था।

·         यह विधि प्रायोजना विधि जैसी ही विधि है। जो करके सीखने पर आधारित है।

·         इस विधि का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना था। और पाठ्यचर्या में 4H- Head, Heart, Hand and Health को शामिल करने का विचार सबसे पहले इसी विधि में दिया।  

·         सहायक सामग्री का सबसे पहले प्रयोग विधि में किया गया। सामाजिक अध्ययन को सबसे पहले इस विधि में शामिल किया गया।

·         वर्तमान में कार्य अनुभव विषय इसी विधि पर आधारित है भारत में सबसे पहले निशुल्क प्राथमिक शिक्षा का विचार ‘गोपाल कृष्ण गोखलेने सन् 1911 में दिया। अत: इन्हें प्राथमिक शिक्षा का जनक कहते हैं। किन्तु निशुल्क प्राथमिक शिक्षा सबसे पहले सन् 1937 में बुनियादी शिक्षा के रूप में दी गई।

 

8.   खेल विधि हेनरी काल्डवेल कुक 1921 -इंग्लैण्ड

·         खेल विधि का निर्माण हेनरी कोल्डवेल कुक ने अपनी पुस्तक ‘Play Way' के माध्यम से किया। जिसका मुख्य उद्देश्य बालक को शिक्षा प्रदान करना है। किंतु उसका माध्यम खेल है।

·         इस विधि में विद्यार्थी को स्वतंत्र रूप से खेलने का अवसर प्रदान किया जाता है। जिससे उसका सर्वाधिक भावनात्मक विकास होता है।

·         खेल के माध्यम से बालक का सर्वांगीण विकास हो जाता है क्योंकि इस विधि में सभी प्रकार के उद्देश्यों के विकास से संबंधित खेल शामिल किए गए हैं। जैसे-  (1) ज्ञानात्मक उद्देश्य- चोर सिपाही, सांप-सीढ़ी, अंत्याक्षरी, (2) भावनात्मक उद्देश्य- नाटक, अभिनय, भाषा आशुभाषण, गीत व संगीत आदि। (3) क्रियात्मक उद्देश्य- खो-खो, कबड्डी, दौड़ कुश्ती आदि।

·         इस प्रकार खेल के माध्यम से सभी प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है। अतः प्राथमिक स्तर पर अंकगणित की सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जाती है।

 

9.   भ्रमण/क्षेत्रीय/ पर्यटन/ सरस्वती भ्रमण- पेस्टोलॉजी

भ्रमण के प्रकार

(1) स्थानीय भ्रमण या अल्प कालीन भ्रमण- समय 1 घंटे, उपयोगी- पूर्व प्राथमिक व प्राथमिक स्तर पर। जैसे डाकघर, चिकित्सालय, बैंक व झील आदि।

(2) अंतर्जनपदीय भ्रमण या सामान्य भ्रमण- समय- 1 से 3 दिन, उपयोगी- उच्च प्राथमिक स्तर से उच्च स्तर तक, स्थल- ऐतिहासिक भौगोलिक प्राकृतिक स्थल ।

(3) अंतर राज्य या अंतरराष्ट्रीय भ्रमण या दीर्घ कालीन भ्रमण- समय- 1 सप्ताह से 3 माह, उपयोगी- उच्च स्तर पर, स्थल-  ऐतिहासिक भौगोलिक राजनीतिक सामाजिक स्तर ।

·         पेस्टोलॉजी प्रकृतिवादी विचारधारा के समर्थक थे। उन्होंने विद्यार्थियों की प्रकृति के आधार पर इस विधि का निर्माण किया। क्योंकि बच्चों में भ्रमण करने की प्रकृति होती है। अत: भ्रमण पर आधारित यह विधि है। एक प्रसिद्ध चीनी कहावत के अनुसार- “एक बार देखना, सौ बार सुनने से अधिक उपयोगी है।“ को आधार मानकर यह विधि निर्मित की गई।
·         इससे विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है।

 

सोपान-

(1 (1) पाठ्य प्रकरण का चयन
(2) स्थल का चयन
(3) आवश्यक सामग्री का चयन
(4) क्रियान्वयन
(5) मूल्यांकन
 
गुण-
(1) सामाजिक अध्ययन की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
(2) अत्यंत रोचक विधि है।
(3) विद्यार्थियों की निरीक्षण क्षमता का विकास होता है।
(4) प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
(5) प्रत्येक स्तर पर उपयोग विधि है।
(6) विद्यार्थी सक्रिय भूमिका में रहते हैं।
(7) प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है।
(8) मनोरंजन से युक्त शिक्षण विधि है।

 

दोष-

(1) खर्चीली विधि है।

(2) घटना दुर्घटना होने का भय बना रहता है।

(3) विद्यार्थी शिक्षण का उद्देश्य केवल मनोरंजन से लगाते हैं।

(4) विवाद होने का भय बना रहता है।

(5) अन्य विषयों का शिक्षण कार्य बाध्य होता है।


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