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Purpose method | प्रयोजना विधि

 Purpose method | प्रयोजना विधि - विलियम हेनरी किलपैट्रिक - 1918 अमेरिका।

 विस्तार- प्रोजेक्ट या परियोजना शब्द इंजीनियरिंग विज्ञान की देन है ।

परियोजना शब्द का सबसे पहले प्रयोग 1980 ई. में अमेरिका के रिकार्ड्स नामक इंजीनियर ने किया था। 

 प्रयोजना शब्द का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग सन् 1908 ईस्वी में अमेरिका के राष्ट्रीय शिक्षा परिषद द्वारा किया गया।

सन् 1911 में अमेरिका के प्रसिद्ध दर्शन शास्त्री जॉन डीवी दर्शन शास्त्र के अंतर्गत प्रयोजनवादी विचारधारा का निर्माण किया ।

सन 1918 ईस्वी में जॉन डीवी के शिष्य किलपैट्रिक ने प्रयोजना विधि का निर्माण किया।

परिभाषा - किलपैट्रिक- " प्रयोजना एक सहउद्देश्य प्रक्रिया है जिसे मन लगाकर के सामाजिक वातावरण में पूरा किया जाता है।"

प्रयोजना के प्रकार - मुख्य रूप से दो प्रकार है।

I. व्यक्तिगत प्रयोजना- चार्ट बनाना, मॉडल बनना, चटनी, अचार, मुरब्बा बनाना।

II. सामूहिक प्रयोजना- नाटक-मंचन करना, वृक्षारोपण करना, जागरूकता रैली निकालना, सफाई अभियान चलाना आदि।

किलपैट्रिक के अनुसार- प्रयोजना के प्रकार 

  1. रचनात्मक प्रयोजना- सृजनशीलता के विकास के लिए यह सर्वश्रेष्ठ प्रकार है। जैसे- सिलाई, कढ़ाई, बुनाई करना, चटनी, अचार, मुरब्बा, चार्ट, मॉडल आदि बनाना।
  2. कलात्मक प्रयोजना- कलाओं के विकास के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे- नाटक मंचन, अभिनय, मूक अभिनय, भाषण, आशु-भाषण कविता वाचन, अंत्याक्षरी आदि।
  3. अभ्यासात्मक प्रयोजना- अवकाश के दिनों का सदुपयोग करने के लिए इस प्रयोजना का ही प्रयोग किया जाता है।  जैसे- अधिन्यास (असाइनमेंट), सत्रीय कार्य, दत्त कार्य आदि।
  4. समस्यात्मक प्रयोजना- विद्यार्थी को समाज की किसी तात्कालिक समस्या का व्यवहारिक हल खोजने के लिए इस प्रकार की प्रयोजना का प्रयोग किया जाता है। जैसे- (i) बेरोजगारी को कैसे कम किया जा सकता है? (ii) महिला साक्षरता दर को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
प्रयोजना विधि-  इसके 6 सोपान है जो निम्न प्रकार से हैं-
Purpose Teaching Method
  1. परिस्थिति उत्पन्न करना
  2. प्रयोजना का चयन करना 
  3. रूपरेखा तैयार करना 
  4. क्रियान्वयन करना 
  5. मूल्यांकन करना 
  6. लेखा-जोखा प्रस्तुत करना आलेखन /प्रतिवेदन देना

प्रयोजना विधि के गुण-

  1. समस्या का व्यावहारिक हल प्राप्त होता है। 
  2. सर्वाधिक क्रियाशील विधि है। 
  3. विद्यार्थी में सृजनशीलता का विकास होता है।
  4. ' करके सीखने ' की प्रवृत्ति का विकास होता है। 
  5. विद्यार्थी में समूह में कार्य करने की प्रवृत्ति विकसित होती है। 
  6. भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
  7. ज्यामितीय आकृतियों के समस्याओं के समाधान की सर्वश्रेष्ठ विधि है। 
  8. प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है। 
  9. क्रिया के प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है। 
  10. बाल केंद्रित विधि है तथा मनोवैज्ञानिक विधि भी है।

प्रयोजना विधि के दोष-

  1. सबसे अधिक खर्चीली विधि है। 
  2. विद्यालय का स्वरूप कारखाने के जैसा हो जाता है।
  3. विद्यार्थी शिक्षण में कम, क्रियात्मक कार्य में अधिक रुचि लेता है। 
  4. क्रियात्मक विषयों के लिए ही उपयोगी विधि है।
  5.  ज्ञानात्मक एवं भावनात्मक उद्देश्यों का विकास कम होता है। 
  6. समय अधिक लगता है। 
  7. प्रत्येक प्रकरण को इस विधि से पढ़ाया नहीं जा सकता है। 
  8. पाठ्यक्रम समय पर पूरा नहीं किया जा सकता है।


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