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Science & Maths Teaching Methods : विज्ञान शिक्षण की विधियाँ

Science &Maths  Teaching Methods : विज्ञान & गणित शिक्षण की विधियाँ

Science and Maths Teaching Methods


Science शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के "Scientia" शब्द से हुई है जिसका अर्थ है जानना ।
अर्थात अपने आसपास के होने वाले भौतिक रासायनिक जैविक परिवर्तनों को जानना ही विज्ञान है।

Scince Teaching Methods: विज्ञान शिक्षण की विधियां-


विज्ञान की प्रकृति-
• विज्ञान की प्रकृति अत्यंत लचीले है।
• इसे कला और विज्ञान दोनों रूप में जाना जाता है।
• इसे जीने की कला का विज्ञान कहते है तथा मनुष्य इसके माध्यम समाज से संतुलन स्थापित करके अपना जीवन यापन करता है।

विज्ञान के क्षेत्र-
विज्ञान का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है।
पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर के वर्तमान के समस्त परिवर्तन इसके क्षेत्र में शामिल होते हैं।
रायबर्न के अनुसार- "विज्ञान के बिना मानव की कल्पना नहीं की जा सकती है क्योंकि वर्तमान युग विज्ञान का युग है।"

विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य-
• स्वयं को जानना।
• विद्यार्थियों को पोषक तत्व का ज्ञान देना।
• रासायनिक परिवर्तनों का ज्ञान कराना।
• शारीरिक अंगों का ज्ञान कराना।
• शरीर की गतिविधियों का ज्ञान कराना।
• पर्यावरण का ज्ञान कराना।
• पर्यावरणीय चक्र का ज्ञान कराना।
• खगोलीय, भौतिकी एवं रासायनिक क्रियाओं का ज्ञान कराना।
• साफ-सफाई की जानकारी देना।
• संतुलित भोजन का ज्ञान देना।
• विद्यार्थी में खोज करने की प्रवृत्ति का विकास कराना।
• प्रयोगशाला का उपयोग करके भौतिक, रासायनिक, जैविक परिवर्तन का ज्ञान प्राप्त कराना। 
• जीने की कलाओं का विकास कराना।
• भूमंडलीय परिवर्तनों का ज्ञान कराना।
• समय का सदुपयोग कराना।

विज्ञान शिक्षण की विधियाँ-

1. प्रयोग प्रदर्शन विधि- डेजी जाॅन माॅरविल
• इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों के अमूर्त ज्ञान को मूर्त करने का प्रयास करता है।
•  अर्थात यह विधि "अमूर्त से मूर्त की ओर" शिक्षण सूत्र पर आधारित है।
• यह विधि करके सीखने पर आधारित है। अतः इसे "आओ करके सीखे" नाम से भी जाना जाता है।
• इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों के सहयोग से उनकी अमूर्त समस्याओं का समाधान प्रयोग के माध्यम से करता है।
• अध्यापक पाठ्य पुस्तक में से किसी प्रकरण का चयन करके विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करता है। और उनके सहयोग से प्रयोग करके प्रदर्शन के माध्यम से उसे स्पष्ट करता है।
• यह प्राथमिक स्तर पर अत्यंत उपयोगी विधि है।

2.  प्रयोगशाला विधि - डेजी जाॅन माॅरविल
• यह विधि भी "करके सीखने" सिद्धांत पर आधारित है।
• इस विधि में विद्यार्थी स्वयं प्रयोग करके अमूर्त समस्याओं का समाधान कर लेते हैं।
• यह विधि भी "अमूर्त से मूर्त की ओर" शिक्षण सूत्र पर आधारित है।
• उच्च स्तर पर यह विधि अत्यंत उपयोगी है।

3. अधिन्यास विधि - (Assignment Method)
• यह विधि गृह कार्य प्रदान करने की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
• इस विधि में अध्यापक विद्यार्थीयों को सक्रिय रखने के लिए दत्त कार्य के रूप में कोई ऐसा कार्य प्रदान करता है। जिसमें विद्यार्थी निश्चित समय में उस कार्य को हल करते हैं।
• वनस्पति विज्ञान की यह सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जाती है।
• इस विधि से बच्चों में सर्जनशीलता का विकास होता है। तथा संग्रह करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
• हरबेरियम फाइल, पोर्टफोलियो फाइल आदि संग्रह संबंधित कार्य इसी विधि में कराए जाते हैं।
पोर्टफोलियो फाइल-
• विद्यार्थियों में संग्रह करने की प्रकृति का विकास करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
• इसमें विद्यार्थी समाज की महान विभूतियों की किसी विकट प्राकृतिक आपदा अथवा घटना दुर्घटनाओं के चित्रों को समाचार पत्र के माध्यम से प्राप्त करते हैं। और उन्हें काट कर के अभ्यास पुस्तिका में प्रदर्शित करते हैं।
• उनसे संबंधित सामान्य सूचना लिख करके प्रदर्शित करते हैं।


4. समस्या समाधान विधि - सुकरात एवं सेंट थॉमस
• यह विधि करो और सिखों के सिद्धांत पर आधारित है।
• जिसके माध्यम से समस्या का भौतिक हल प्राप्त होता है।
• अध्यापक समस्या की अनुभूति होने पर उस समस्या का चयन करके विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करता है। और विद्यार्थियों को स्वयं खोज करके उसका हल निकालने का आदेश देता है।
• सभी विद्यार्थी एक ही समस्या का हल व्यक्तिगत रूप से खोजते हैं। जिससे सर्वश्रेष्ठ हल प्राप्त हो जाता है। अंत में अध्यापक सुझाव प्रस्तुत करता है।

सोपान-
1. समस्यानुभूति
2. समस्याभिसूचन
3. समस्या का चयन
4. आंकड़ों/ तथ्यों का संकलन
5. मूल्यांकन
6. प्रतिवेदन/ सुझाव

गुण-
• बाल केंद्रित विधि है।
• विद्यार्थी में खोज करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
• समस्या का बौद्धिक हल प्राप्त होता है।
• सभी विद्यार्थी सक्रिय रहते हैं।
• प्राप्त ज्ञान स्थायी रहता है।
• वैज्ञानिक विधि है।
• समस्या का सर्वश्रेष्ठ हल प्राप्त होता है।

दोष-
• समय बहुत अधिक लगता है।
• प्राथमिक स्तर पर अनुपयोगी विधि है।
• इस विधि में अध्यापक की भूमिका गौण रहती है।
• कमजोर व मंदबुद्धि विद्यार्थियों के लिए प्रभावी नहीं है।
• खर्चीली विधि है।

5. विश्लेषण विधि - अरस्तू
• विश्लेषण का तात्पर्य फैलाना अथवा व्यापक करना है जब अध्यापक प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए उसे निश्चित करके स्पष्ट करता है तो इसे विश्लेषण विधि करते हैं।

इस विधि में तीन शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
1. अज्ञात से ज्ञात की ओर
2. प्रमाणिक से प्रत्यक्ष की ओर
3. निष्कर्ष से परिकल्पना की ओर

जैसे-  ₹5 की 20 टोपी मिलती है। तो ₹3 की कितनी टॉपिक मिलेगी।
हल-  ₹5 की टोपी 20 आती है।
₹1 की टोपी = 20 / 5 = 4 टॉफी
₹2 की टॉफी = 4 + 4 = 8 ₹3 की टोपी = 8 + 4 = 12 टॉफी Ans.

गुण-
• विद्यार्थियों को व्यापक ज्ञान प्राप्त होता है।
• प्राप्त ज्ञान की स्थाई होता है।
• समझ का विकास होता है।
• तार्किक क्षमताएं विकसित होती है।
• पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती है।
• व्यवहारिक विधि है।

दोष-
• अमनोवैज्ञानिक विधि है।
• सैद्धांतिक विधि नहीं है।
• निष्कर्ष को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है।
• यह विधि पूरी तरह से अवैज्ञानिक विधि है।
• समय बहुत अधिक लगता है।
• विद्यार्थियों को अनावश्यक क्रियाएं करनी होती है।

6. संश्लेषण विधि -
संश्लेषण विधि तात्पर्य ज्ञान को एकत्रित करना अथवा समेटना है।
इस विधि में अध्यापक सैद्धांतिक रूप से प्रकरण को स्पष्ट करने का प्रयास करता है।

इस विधि में भी तीन शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
ज्ञात-प्रत्यक्ष-प्रकल्पना
1. ज्ञात से अज्ञात की ओर
2. प्रत्यक्ष से प्रमाणित की ओर
3. परिकल्पना से निष्कर्ष की ओर

विश्लेषण विधि एक-दूसरे की पूरक मानी जाती है। दोनों का प्रयोग एक साथ ही किया जाता है। किंतु गणित शिक्षण में इनका प्रयोग अलग अलग किया जाता है।

जैसे- एक आयत की लंबाई 25 मीटर और चौड़ाई 15 मीटर है तो इसके कितने मीटर तार की आवश्यकता होगी।
हल-
सूत्र- 2×( लंबाई + चौड़ाई ) अर्थात
2(25 + 15)
= 2 × 40 = 80 मीटर Ans.


परिभाषाएं-
कार्ल जंग के अनुसार-  "संश्लेषण विधि का तात्पर्य घास के ढेर से तिनके को खोजना है। जबकि विश्लेषण विधि में घास के ढेर से तिनका स्वयं बाहर आ जाता है।"

गुण -
• बाल केंद्र की विधि है।
• मनोवैज्ञानिक विधि है।
• सैद्धांतिक विधि है।
• निष्कर्षों को प्रमाणित किया जा सकता है।
• पूरी तरह से वैज्ञानिक विधि है।
• विद्यार्थियों को अनावश्यक क्रियाएं नहीं करनी होती है।
• कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
• खोज करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।

दोष-
• विद्यार्थी में रखने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
• प्राथमिक स्तर पर अनुपयोगी विधि है।
• विद्यार्थियों को व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है।
• शिक्षण प्रक्रिया यंत्रवत हो जाती है।
• समाज का विकास नहीं हो पाता है।
• विद्यार्थियों को सीमित ज्ञान ही प्राप्त हो पाता है।

समीकरण विधि-
• यह बीजगणित की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
• इस विधि में दाएं पक्ष की ज्ञात राशियों को बाएं पक्ष की ओर ले जाया जाता है एवं बाएं पक्ष की अज्ञात राशियों को दाएं तरफ लाया जाता है। 
• विश्लेषण एवं संश्लेषण करके निष्कर्ष निकाला जाता है।




Maths Teaching Methods : गणित शिक्षण की विधियाँ

गणित शिक्षण की विधियां-

I. प्राथमिक स्तर पर-
1. खेल विधि-

2. कहानी विधि -

3. आगमन विधि- "सूत्र- पूर्ण,विशिष्ट, ज्ञात, स्थूल को उदाहरण से सरल करो।"

4. निगमन विधि- "सूत्र- अंश, सामान्य, अज्ञात व सूक्ष्म को नियमों से जटिल करो।"

5. विश्लेषण विधि- "सूत्र- अज्ञात से ज्ञात, निष्कर्ष से अनुमान व प्रमाणिक से प्रत्यक्ष"
• विश्लेषण का तात्पर्य फैलाना अथवा व्यापक करना है जब अध्यापक प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए उसे निश्चित करके स्पष्ट करता है तो इसे विश्लेषण विधि करते हैं।

इस विधि में तीन शिक्षण सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
1. अज्ञात से ज्ञात की ओर
2. प्रमाणिक से प्रत्यक्ष की ओर
3. निष्कर्ष से परिकल्पना की ओर

6. संश्लेषण विधि- सूत्र- "ज्ञात से अज्ञात, अनुमान के आधार पर निष्कर्ष प्रत्यक्ष से प्रमाणिक की ओर।"
संश्लेषण विधि तात्पर्य ज्ञान को एकत्रित करना अथवा समेटना है।
इस विधि में अध्यापक सैद्धांतिक रूप से प्रकरण को स्पष्ट करने का प्रयास करता है।

इस विधि में भी तीन शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
ज्ञात-प्रत्यक्ष-प्रकल्पना
1. ज्ञात से अज्ञात की ओर
2. प्रत्यक्ष से प्रमाणित की ओर
3. परिकल्पना से निष्कर्ष की ओर

विश्लेषण विधि एक-दूसरे की पूरक मानी जाती है। दोनों का प्रयोग एक साथ ही किया जाता है। किंतु गणित शिक्षण में इनका प्रयोग अलग अलग किया जाता है।

II. उच्च प्राथमिक स्तर पर-
1. आगमन-निगमन विधि-

2. विश्लेषण-संश्लेषण विधि-

3. व्याख्यान विधि-

4. खोज विधि-

5. समीकरण विधि-
• यह बीजगणित की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
• इस विधि में दाएं पक्ष की ज्ञात राशियों को बाएं पक्ष की ओर ले जाया जाता है एवं बाएं पक्ष की अज्ञात राशियों को दाएं तरफ लाया जाता है। 
• विश्लेषण एवं संश्लेषण करके निष्कर्ष निकाला जाता है।

6. प्रयोगशाला विधि-
• यह विधि भी "करके सीखने" सिद्धांत पर आधारित है।
• इस विधि में विद्यार्थी स्वयं प्रयोग करके अमूर्त समस्याओं का समाधान कर लेते हैं।
• यह विधि भी "अमूर्त से मूर्त की ओर" शिक्षण सूत्र पर आधारित है।
• उच्च स्तर पर यह विधि अत्यंत उपयोगी है।

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