Compose Teaching Methods : रचना शिक्षण की विधियाँ
हिंदी में रचना शिक्षण की निम्नलिखित शिक्षण विधियां है जो इस प्रकार है।
Compose Teaching Methods : रचना शिक्षण की विधियाँ
हिंदी में रचना शिक्षण की
निम्नलिखित शिक्षण विधियां है जो इस प्रकार है।
1.
अनुकरण विधि- पेस्टोलॉजी
·
पेस्टोलॉजी बहुत ही प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री थे । उन्होंने बच्चों
की प्रकृति के आधार पर इस विधि का निर्माण किया क्योंकि बच्चों में नकल करने की
प्रवृत्ति होती है, अतः यह नकल पर आधारित विधि है।
·
यह रचना शिक्षण की विधि है जिससे विद्यार्थियों को निबंध लिखना एवं
पत्र लिखना सिखाया जाता है।
·
अध्यापक कक्षा में आते हैं
और एक निबंध आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हैं। जिसकी भाषा शैली बहुत ही
उच्च होती है। विद्यार्थी ध्यानपूर्वक
सुनते हैं और आवश्यकता पड़ने पर लिखते हैं।
·
जब पूरा निबंध समाप्त हो जाता है तो अध्यापक मूल निबंध से मिलते
जुलते किसी अन्य प्रकरण पर विद्यार्थियों को रचना करने का आदेश देता है।
·
जैसे गाय के आधार पर- भैंस पर, रेल दुर्घटना के आधार पर- बस दुर्घटना पर
·
इस प्रकार विद्यार्थी मूल निबंध के आधार पर अनुकरण करते हुए नवीन
प्रकरण पर निबंध लिखना सीख जाते हैं।
गुण-
·
प्राथमिक स्तर पर रचना शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
·
विद्यार्थी में अभिव्यक्ति
की क्षमता का विकास सरलता से हो जाता है।
·
रचना शिक्षण के सबसे सरल विधि है।
·
विद्यार्थियों के शब्दकोश में वृद्धि होती है।
·
लेखन कौशल का विकास होता है।
·
विद्यार्थियों /बालकों की प्रवृत्ति पर आधारित विधि है।
·
विद्यार्थी में रचना संबंधी समस्त गुण सरलता से विकसित हो जाता है।
दोष –
·
नकल करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
·
विद्यार्थियों की भाषा शैली स्वयं की नहीं होती है।
·
उच्च स्तर पर अनुपयोगी विधि है।
·
संबंधित प्रकरण पर ही रचना कराई जा सकती है।
·
कभी-कभी अर्थ का अनर्थ कर देते हैं।
2.
देखो और रचो विधि - सीताराम चतुर्वेदी
·
इस विधि से विद्यार्थियों को वाक्य की रचना करना सिखाया जाता है।
· अध्यापक वाक्य को शब्दों के रूप में विभक्त करके अव्यवस्थित क्रम में कार्ड के माध्यम से लिखकर प्रस्तुत करता है और विद्यार्थियों को सही क्रम में कार्ड को देखकर रखने का आदेश देता है।
विद्यार्थी
कार्ड को सुव्यवस्थित क्रम में रखते हैं और वाक्य की रचना करना सीख जाते हैं।
·
जैसे-
है। | जाता | स्कूल | से | साईकिल | राम |
---|
·
इस विधि में किसी तात्कालिक प्राकृतिक घटना पर विद्यार्थियों से
निबंध लिखवाया जाता है। अध्यापक घटना से संबंधित कोई चित्र प्रस्तुत करता है।
विद्यार्थी चित्र को देखते हैं और अध्यापक चित्र की व्याख्या करते हुए
विद्यार्थियों को चित्र देखकर रचना करने का आदेश देता है। विद्यार्थी रचना करना सीख
जाते हैं।
3.
प्रश्नोत्तर विधि सुकराती विधि - सुकरात
·
इस विधि में अध्यापक संपूर्ण प्रकरण का विकास प्रकरण का विकास
प्रश्नोत्तर विधि के माध्यम से करता है।
·
अध्यापक कक्षा में प्रकरण को स्पष्ट करते हैं फिर विद्यार्थियों से
एक-एक करके उस प्रकरण से संबंधित जितने भी प्रश्न बन सकते हैं सभी प्रश्न करता है।
·
जब विद्यार्थी सभी प्रश्नों का उत्तर दे देते हैं तो अध्यापक उस
प्रकरण पर विद्यार्थियों को निबंध लिखने का आदेश देता है।
·
विद्यार्थी सरलता से निबंध लिखना सीख जाते हैं।
गुण –
·
यह रचना शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
·
विद्यार्थियों का ध्यान केंद्रित करने की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
·
उच्च स्तर पर रचना शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
·
प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
·
प्रकरण का वास्तविक ज्ञान प्रश्नों के माध्यम से प्राप्त हो जाता है।
·
बाल केंद्रित विधि है।
·
लेखन कौशल का विकास होता है।
·
अध्यापक और विद्यार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं।
दोष-
·
अध्यापक को बहुत अधिक क्रिया करनी होती है।
·
प्रश्नों का निर्माण करना कठिन कार्य है।
·
इस विधि से प्राथमिक स्तर पर शिक्षण कार्य में कठिनाई होती है।
4.
उद्बोधन विधि-
·
ग्रामीण जीवन से संबंधित प्रकरण पर रचना करने के लिए यह
अत्यंत उपयोगी विधि है।
·
इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों को ग्रामीण जीवन से संबंधित किसी
प्रकरण पर निबंध लिखने का आदेश देता है जब विद्यार्थी निबंध लिख लेते हैं तो
अध्यापक उनकी अभ्यास पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करता है और त्रुटियों को दृष्टिगत
करते हुए करते
हुए प्रकरण पर व्याख्यान प्रस्तुत करता
है। जिससे विद्यार्थी अपनी
कमियों को दूर कर रचना करना सीख जाते हैं।
·
बच्चों को अभ्यास करना सिखाने के लिए यह विधि सबसे महत्वपूर्ण
विधि है।
5.
प्रबोधन विधि-
·
इस विधि में अध्यापक जिस प्रकरण पर विद्यार्थियों से रचना करना सिखाता है। उसे व्याख्यान के माध्यम
से पहले स्पष्ट कर देता है।
·
उसके पश्चात जब विद्यार्थी प्रकरण का पूरा बोध कर लेते हैं तो उन्हें उसी
प्रकरण पर रचना करने का आदेश दिया
जाता है जिससे विद्यार्थी सरलता से रचना करना सीख जाते हैं।
·
इस विधि में अध्यापक पूरे प्रकरण का व्याख्यान करके बच्चों को स्पष्ट
रूप से बताता है और बच्चे अपने अधिगम के माध्यम से इसे सरलता से ग्रहण कर लेते हैं
और रचना करना सीख जाते हैं।
6.
मंत्रणा विधि/परामर्श विधि-
·
इस विधि में अध्यापक और विद्यार्थी दोनों मिलकर प्रकरण पर विचार
विमर्श करते हैं।
·
जब अध्यापक और विद्यार्थी दोनों विचार विमर्श के माध्यम से प्रकरण को
स्पष्ट कर लेते हैं तो अध्यापक उसी प्रकरण पर विद्यार्थियों को रचना करने का आदेश
देता है।
·
इस विधि में विद्यार्थी और अध्यापक दोनों मिलकर आपस में चर्चा व परिचर्चा
करते हैं जिस प्रकरण पर रचना करनी होती है उस पर स्पष्ट रूप से चर्चा की जाती है
उसके पश्चात ही विद्यार्थियों को रचना करने का आदेश देता है।
7.
रूपेखा विधि-
·
इस विधि में अध्यापक कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के माध्यम से प्रकरण की रूपरेखा तैयार करता
है।
·
विद्यार्थी एक-एक बिंदु की रूपरेखा के आधार पर उससे संबंधित प्रकरण
को समझते हुए अध्यापक का अनुकरण करते हुए रचना करना सीख जाते हैं।
8.
वस्तुबोध विधि-
·
इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों को वस्तु स्थिति का बोध कराता है अर्थात
किसी भी प्रकरण की रचना करने से पूर्व उसकी पूरी वस्तुस्थिति का बोध अध्यापक
करवाता है।
·
इसमें ठोस वस्तुओं को प्रस्तुत करके बच्चों के सामने रखता है बच्चे
उनको ध्यान से देखते हैं उन पर चर्चा करते हैं और प्रकरण स्पष्ट होने के पश्चात
विद्यार्थी रचना करना सीख जाते हैं।
9.
चित्रबोध विधि-
·
इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों को चित्र के माध्यम से रचना करने का आदेश देता है।
·
सर्वप्रथम अध्यापक विद्यार्थियों को पूरी कहानी या प्रकरण से संबंधित
चित्रों को विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करता है और उसके पश्चात विद्यार्थियों
से चित्र पर
चर्चा करके प्रकरण को स्पष्ट करता है।
·
इस प्रकार विद्यार्थी चित्र के माध्यम से वह चित्र के बोध के माध्यम से रचना करना
सीख जाते हैं।
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