Hindi Bhasha Teaching Method | हिंदी भाषा शिक्षण की विधियां
हिंदी शिक्षण का मुख्य उद्देश्य भाषाई कौशलों का विकास करना है भाषाई कौशल निम्न है।
- सुनना -- श्रवण कौशल-- आदर्श वाचन
- बोलना-- वाचन कौशल-- अनुकरण वाचन
- पढ़ना-- पठन कौशल-- मौन वाचन
- लिखना-- लेखन कौशल-- गृहकार्य/ अभ्यास कार्य
1. वाचन की विधियां
वाचन- वाचन दो प्रकार का होता है-
(1) सस्वर वाचन -
(i) आदर्श वाचन
(ii) अनुकरण वाचन - A. व्यक्तिगत वाचन B. सामूहिक वाचन
(iii) समवेत वाचन
(2) मौन वाचन
(i) द्रुतवाचन
(ii) सिंहावलोकन/ गंभीर पठन
(iii) विहंगावलोकन
सस्वर वाचन विधियां
(1) सस्वर वाचन-
स्वर के साथ किए जाने वाले वाचन क ही सस्वर वाचन करते हैं। सस्वर वाचन से ही वाक्य संबंधी अशुद्धियां दूर होती है। वाचन करने की क्षमता विकसित होती है। सस्वर वाचन के तीन प्रकार हैं- (i) आदर्श वाचन
(ii) अनुकरण वाचन - A. व्यक्तिगत वाचन B. सामूहिक वाचन
(iii) समवेत वाचन
(i) आदर्श वाचन-
यह अध्यापक द्वारा किया जाने वाला वाचन है इससे विद्यार्थियों के श्रवण कौशल का विकास होता है। पाठ्यवस्तु की व्याख्या इसी वचन में की जाती है।
इसके दो प्रकार हैं-
(अ) जब अध्यापक आरोह-अवरोह एवं विराम चिन्हों का ध्यान रखते हुए सस्वर वाचन करता है, तो इसे गद्य शिक्षण का आदर्श वाचन करते हैं ।
(ब) जब अध्यापक सुर, लय-ताल, गति-यति आदि का ध्यान रखते हुए सस्वर वाचन करता है, तो इसे पद्य शिक्षण का आदर्श वाचन करते हैं।
(ii) अनुकरण वाचन-
जब विद्यार्थी अध्यापक द्वारा पढ़े गए पाठांश का उचित रूप में वाचन करते हैं, तो इसे अनुकरण वाचन करते हैं ।
अनुकरण वाचन एक बार में एक ही विद्यार्थी से कराया जाता है, किंतु संपूर्ण शिक्षण में 3 विद्यार्थी अनुकरण वाचन करते हैं।
अनुकरण वाचन सामान्यतः कक्षा 3 से प्रारंभ होता है।
वाचन संबंधी अशुद्धियां अथवा उच्चारण संबंधी अशुद्धियां इसी वाचन से दूर की जाती है। यह उच्चारण संबंधी अशुद्धियों को दूर करने का सर्वश्रेष्ठ प्रकार है।
इस वाचन से विद्यार्थियों के वाचन अथवा बोलने के कौशल का विकास होता है।
(iii) समवेत वाचन-
जब अध्यापक एवं कक्षा के सभी विद्यार्थी एक साथ मिलकर के उच्च स्वर में स्वर, लय, गति के साथ पाठ का सस्वर वाचन करते हैं, तो इसे समवेत वाचन करते हैं।
समवेत वचन को सामूहिक वचन भी करते हैं।
समवेत वाचन केवल पद्य शिक्षण में किया जाता है ।
कक्षा तीन तक यह अत्यधिक उपयोगी है। किंतु उच्च स्तर तक इसका प्रयोग किया जाता है।
यह वाचन की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
इससे कमजोर एवं मंदबुद्धि बच्चे भी वाचन करना सीख जाते हैं। अतः यह वाचन करना सिखाने की सर्वश्रेष्ठ विधि है इस वाचन से उच्चारण संबंधी अशुद्धियों दूर नहीं हो पाती है।
मौन वाचन की विधियां
(2) मौन वाचन-
जब विद्यार्थी चुपचाप बिना होंठ हिलाए पाठ्यवस्तु का मौन वाचन करता है तो इसे मौन वाचन करते हैं।
- मौन वाचन केवल गद्य शिक्षण में होता है।
- मौन वाचन करते समय मस्तिष्क व नेत्र की मुख्य रूप से सक्रिय रहते हैं।
- मौन वाचन से विद्यार्थियों के पठन कौशल का विकास होता है।
- मौन वाचन सामान्य रूप से कक्षा-4 एवं अभीष्ट/अनिवार्य रूप से कक्षा-6 से प्रारंभ होता है।
- मौन वाचन से वाचन करने की गति लगभग 3 गुना बढ़ जाती है।
- मौन वाचन से ज्ञान की सर्वाधिक ग्रहणशीलता होती है।
- ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का विकास मौन वाचन से ही होता है।
मौन वाचन के तीन प्रकार हैं-
(i) द्रुतवाचन-
यह वाचन की सबसे तीव्र गति है इसमें वाचन करने की गति लगभग 8 से 10 गुना बढ़ जाती है। जब विद्यार्थी अत्यंत तीव्र गति से पाठ का मौन पठन करता है, तो इस द्रुतवाचन वाचन कहते हैं।
जैसे- समाचार, पत्र-पत्रिकाएं, उपन्यास, कहानी आदि पढ़ते समय द्रुत वाचन ही किया जाता है।
(ii) सिंहावलोकन/ गंभीर पठन-
जब विद्यार्थी गंभीर मुद्रा में पाठ्यवस्तु का अत्यंत तीव्र गति से अवलोकन करता है। इसमें मूल पाठ्यवस्तु का ही अवलोकन किया जाता है, अतः इसे ही सिंहावलोकन कहते हैं।
जैसे- परीक्षा भवन में जाने से पूर्व किया गया वाचन सिंहावलोकन या गंभीर वाचन कहते हैं।
ज्ञान की सर्वाधिक ग्रहणशीलता सिंहावलोकन से ही होती है।
सर्वाधिक ध्यान केंद्रण एवं गंभीरता इसी में होती है।
(iii) विहंगावलोकन-
विहंग का तात्पर्य 'चिन्हित करना' अथवा रेखांकित करना है। जब विद्यार्थी पाठ्य पुस्तक पढ़ते समय मूल पाठ्यवस्तु को रेखांकित करते हुए पढ़ता है, तो इसे विहंगावलोकन कहते हैं।
इससे विद्यार्थी जब भी कोई पाठ्यवस्तु भविष्य में पड़ता है तो उसे ये याद आ जाते हैं जो उसने पूर्व में अध्ययन किया था। इसलिए यह बहुत ही उपयोगी विधि भी है।
2. लेखन की विधियां
अब हम लेखन करने की विधियों के बारे में जानेंगे और इनके कौन-कौन से प्रकार है? यह कितने प्रकार की होती है? इनके बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे।
लेखन विधियां- लेखन विधियों के मुख्य रूप से दो प्रकार है।
1. सीखने सिखाने की विधियां -
(i) अनुकरण विधि- A. रूपरेखा अनुकरण विधि B. स्वतंत्र अनुकरण विधि
(ii) पेस्टोलॉजी विधि
(iii) खेल-खिलौना विधि/मांटेसरी विधि
2. सुलेख की विधियां-
(i) जैकाटाट विधि
(ii) अनुलेख विधि
(iii) प्रतिलेख विधि
(iv) श्रुतलेख/श्रव्यलेख/अभ्यास विधि
1. सीखने सिखाने की विधियां-
A. रूपरेखा अनुकरण विधि-
इस विधि में अध्यापक बिंदुओं के माध्यम से वर्ण की रूपरेखा बना देता है। विद्यार्थी एक बिन्दु से दूसरे बिंदु को मिलाते हुए रूपरेखा का अनुकरण करते हैं और लिखना सीख जाते हैं। यह अनुबंधन के सिद्धांत पर आधारित विधि है।
B. स्वतंत्र अनुकरण विधि-
इस विधि में अध्यापक संपूर्ण वर्णमाला को श्यामपट्ट पर लिख देते हैं और विद्यार्थियों को अनुकरण करते हुए सबसे सरल वर्णों को अभ्यास पुस्तिका में उतारने का आदेश देते हैं। विद्यार्थी एक-एक करके स्वतंत्र रूप से सरल वर्णों को लिखते हैं और लिखना सीख जाते हैं।
यह 'सरल से जटिल की ओर' शिक्षण सूत्र पर आधारित विधि है।
इस विधि से विद्यार्थियों को वर्णमाला का क्रमबद्ध ज्ञान नहीं हो पाता है।
(ii) पेस्टोलॉजी विधि-
यह "अंश से पूर्व की ओर" शिक्षण सूत्र पर आधारित विधि है। इसमें अध्यापक एक वर्ण को छोटे-छोटे अंशों में विभक्त कर रोचक तरीके से प्रस्तुत करता है। विद्यार्थी एक-एक अंश को बनाते हैं और इन्हें सम्मिलित कर वर्ण लिखना सीख जाते हैं।
(iii) खेल-खिलौना विधि /मांटेसरी विधि-
इस विधि में वर्ण आकृति को मिट्टी, प्लास्टिक, गत्ते के खिलौने के रूप में निर्मित कर दिया जाता है। विद्यार्थी को उसे खेलने के लिए दिया जाता है और विद्यार्थी देखता है, स्पर्श करता है और ज्ञानेंद्रिय अनुभूति के माध्यम से लिखना सीख जाता है यह वर्ण लेखन की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
(iv) जैकाटाट विधि-
यह शब्द लेखन की विधि है। इसमें अध्यापक श्यामपट्ट पर छोटे छोटे शब्दों को लिख देता है और विद्यार्थियों से अभ्यास पुस्तिका में उतारने का आदेश देता है।
विद्यार्थी जब सभी शब्दों को लिख लेते हैं तो उन्हें किसी अन्य पेज पर, उन्हीं शब्दों को लिखने का आदेश दिया जाता है। फिर श्यामपट्ट पर लिखे शब्दों से मिलान कर अशुद्धियों को दूर करने का आदेश दिया जाता है।
विद्यार्थी अपनी अशुद्धियों का स्वयं सुधार करते हैं। अतः इस विधि को स्वयं सुधार / स्वयं संशोधन विधि भी कहते हैं।
शब्द लेखन की सर्वश्रेष्ठ विधि जैकाटाट विधि है।
2. सुलेख की विधियां-
I. अनुलेख विधि-
इस विधि में अध्यापक श्यामपट्ट पर कोई एक आदर्श वाक्य लिख देता है और विद्यार्थियों को श्यामपट्ट से देखकर के अपनी-अपनी अभ्यास पुस्तिका में 10-10 बार उतारने का आदेश देता है। विद्यार्थी उपर्युक्त वाक्य को देखकर लिखते हैं। जिससे सुलेख का विकास होता है।
जैसे- 'मेरा भारत महान'
II. प्रतिलेख विधि- नकल करना
इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों को स्वरूचि के आधार पर पाठ्य पुस्तक में से देखकर किसी एक पाठ्यांश को की दैनिक रूप से लिखने का आदेश देता है। इससे सुलेख का विकास होता है।
जैसे- नकल करना
III. श्रुतलेख /श्रुतलेख अभ्यास विधि-
इस विधि में अध्यापक स्मृति के आधार पर अथवा पाठ्यपुस्तक में से देखकर किसी एक पाठ्यांश को उचित गति से बोलता है और विद्यार्थी ध्यानपूर्वक सुनते हैं, एवं अपनी अभ्यास पुस्तिका में लिखते हैं।
फिर अध्यापक से जांच करवाते हैं। अध्यापक की गई अशुद्धियों को चिन्हित कर उन्हें शुद्ध रूप में पांच-पांच बार लिखने का आदेश देता है जिससे सुलेख का विकास होता है।
सुलेख के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
लेखन कौशल के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
लेखन गति के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
लेखन कौशल के निर्देश-
- विद्यार्थियों को लिखना सिखाने के लिए सबसे पहले सीधी (।) रेखा का प्रयोग करना चाहिए। अर्थात विद्यार्थियों से सीधी रेखा बनवाना चाहिए।
- लेखनी पकड़ने के उचित तरीके का निर्देश देना चाहिए।
- लेखन कला का विकास अभ्यास से होता है अर्थात विद्यार्थियों को निरंतर अभ्यास कराना चाहिए।
- लिखना प्रारंभ करने में अनुबंधन सिद्धांत अत्यंत उपयोगी है अतः इसका प्रयोग करना चाहिए।
- लिखने के लिए स्लेट, पेंसिल, चाॅक आदि का प्रारंभिक तौर पर प्रयोग करना चाहिए।
- विद्यार्थियों की प्रारंभिक अशुद्धियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
- अभ्यास से उन्हें शुद्ध कराने का प्रयास करना चाहिए।
3. पठन की विधियां
पढ़ाने की कौशल के विकास के लिए पठन विधियां महत्वपूर्ण है। पढ़ने के कौशल के विकास के लिए पठन विधियां अध्ययन करना आवश्यक है। आइए इन्हें हम जानें।
पठन विधियां-
1. शब्द पठन की विधियां-
(i) देखो और कहो विधि
(ii) मांटेसरी विधि
(iii) पठन अनुकरण विधि
(iv) ध्वनि साम्य विधि
2. वाक्य पठन की विधियां-
I. वाक्य विन्यास विधि
II. चित्र कहानी विधि
1. शब्द पठन की विधियां-
(i) देखो और कहो विधि -
इस विधि में अध्यापक श्यामपट्ट पर एक चित्र बना देता है और उस चित्र के नीचे चित्र का नाम लिख देता है।
नाम का पहला अक्षर अपेक्षाकृत आकार में बड़ा होता है। विद्यार्थी चित्र को देखते हैं और नीचे लिखे नाम कहते हैं और पढ़ना सीख जाते हैं।
प्राथमिक स्तर पर पाठ्यपुस्तक का निर्माण इसी विधि के आधार पर किया जाता है। जैसे- 🌹 गुलाब
(ii) मांटेसरी विधि-
इस विधि में दो प्रकार के कार्डों का प्रयोग किया जाता है।
एक प्रकार के कार्ड पर चित्र बने होते हैं और दूसरे प्रकार के कार्ड पर उन चित्रों के नाम लिखे होते हैं।
विद्यार्थी को दोनों कार्ड एक साथ रख कर दिखाए जाते हैं।
विद्यार्थी कार्डों को देखते हैं, साहचर्य स्थापित करते हैं।
फिर अध्यापक नाम वाले कार्ड को अलग कर लेता है और उन्हें मिश्रित करके विद्यार्थी को चित्र के नीचे सही नाम वाले कार्ड को रखने का आदेश देता है।
विद्यार्थी कार्ड को रखते हैं और पढ़ना सीख जाते हैं।
इस विधि में एक बार में 10 कार्डो का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- आम (चित्र) , केला (चित्र), सेब- (चित्र), अंगूर (चित्र) आदि।
(iii) पठन अनुकरण विधि-
इस विधि में अध्यापक बिना मात्रा वाले छोटे-छोटे शब्दों को श्यामपट्ट पर लिख देते हैं और विद्यार्थियों को वर्णों के आधार पर अध्यापक पठन कराता है।
विद्यार्थी पठन का अनुकरण करते हैं और पढ़ना सीख जाते हैं।
जैसे- 'अब मत पढ़ , घर चल चल, नल पर मत चल।'
(iv) ध्वनि साम्य विधि-
इस विधि में अध्यापक उच्चारण में एक समान सुनाई देने वाली ध्वनियों से संबंधित शब्दों को श्यामपट्ट पर लिख देता है और विद्यार्थियों से पठन कराता है।
ध्वनियों में समानता होने के कारण विद्यार्थी सरलता से पढ़ना सीख जाते हैं।
यह पठन शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
पठन कौशल के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
जैसे- काका, मामा, नाना, दादा, चाचा आदि शब्द।
2. वाक्य पठन की विधियां-
I. वाक्य विन्यास विधि -
इस विधि में अध्यापक वाक्य को शब्दों के रूप में व्यक्त कर देता है और विद्यार्थियों से एक-एक शब्द का पठन कराता है जिन्हें विद्यार्थी सम्मिलित करके वाक्य पढ़ना सीख जाते हैं जैसे- राम जाता है।
II. चित्र कहानी विधि-
इस विधि में विद्यार्थियों की पाठ्य पुस्तकों में ऐसी कहानियां सम्मिलित की जाती है जो पूरी तरह चित्रों पर ही आधारित होती है।
विद्यार्थी चित्रों को देखकर कहानी समझ जाते हैं और नीचे लिखे वाक्यों को पढ़ते हैं।
वाक्य पठन की यह सर्वश्रेष्ठ विधि है ।
जैसे- प्यासा कौआ, लालची कुत्ता आदि कहानियां।
पठन विधि के निर्देश-
- विद्यार्थी को पढ़ाने के लिए 'देखो और कहो विधि' का सर्वाधिक प्रयोग करना चाहिए।
- पठन कौशल के विकास के लिए रंगीन एवं आकर्षक चित्रों वाली पाठ्य पुस्तकों का प्रयोग करना चाहिए।
- पठन कौशल का विकास अवलोकन से करना चाहिए।
- दण्ड एवं भय का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- शैक्षिक कौशलों के विकास का ध्यान रखना चाहिए।
- वर्णमाला को कंठस्थ कराना चाहिए।
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