Micro Teaching Method | सूक्ष्म शिक्षण विधि - कीथ एचीसन (अमेरिका 1961)
विस्तार - सूक्ष्म शिक्षण विधि निर्माण सन 1961 ई. में अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोध छात्र कीथ ऐचीसन ने किया इन्हें जनक करते हैं ।
सन 1963 ई. में इसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डी डब्ल्यू ऐलन एवं प्रोफेसर रॉबर्ट एन ब्रूस ने इस विधि का नामकरण किया और इसका सबसे पहले प्रयोग किया।
भारत में सूक्ष्म शिक्षण विधि का आगमन 1967 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंट्रल पेडागॉजिकल संस्थान के प्रोफेसर डीडी तिवारी (दीनदयाल तिवारी) के माध्यम से हुआ अतः इन्हें भारतीय सूक्ष्म शिक्षण विधि का जनक करते हैं।
अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में इस विधि का सबसे पहले प्रयोग 1969 ई. में गुजरात के बड़ौदा विश्वविद्यालय में हुआ।
यह एक प्रशिक्षण की प्रविधि है जिसके माध्यम से शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।
इस विधि से एक बार में एक ही शिक्षण कौशल का विकास किया जाता है।
यह "अंश से पूर्ण की ओर" शिक्षण सूत्र पर आधारित है किंतु इसका सिद्धांत क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत है।
इसमें समय अवधि 5 से 10 मिनट की होती है
कक्षा का आकार भी छोटा होता है जिसमें विद्यार्थियों की संख्या 5 से 10 होती है।
विद्यार्थी की भूमिका अध्यापक के सहपाटी ही अदा करते हैं ।
आत्म प्रतिपुष्टि के लिए टेप रिकॉर्डर, वीडियो रिकॉर्डर, कैमरा आदि का प्रयोग किया जाता है।
सूक्ष्म शिक्षण चक्र- (1) भारतीय उपागम के अनुसार (कुल अवधि 36 मिनट)
नियोजन (Planing) --> शिक्षण (Teaching- 6 Minute) --> प्रतिपुष्टि (Feedback- 6 Minute) --> पुन: नियोजन (Re-planing- 12 Minute) --> पुन: शिक्षण (Re-Teaching- 6 Minute) --> पुन: प्रतिपुष्टि (Re-Feedback- 6 Minute)
(2) अमेरिका उपागम के अनुसार (कुल अवधि - 45 मिनट)
नियोजन (Planing) --> शिक्षण (Teaching- 5 Minute) --> प्रतिपुष्टि (Feedback- 10 Minute) --> पुन: नियोजन (Re-planing- 15 Minute) --> पुन: शिक्षण (Re-Teaching- 5 Minute) --> पुन: प्रतिपुष्टि (Re-Feedback- 10 Minute)
सूक्ष्म शिक्षण के गुण-
- शिक्षण कौशल के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
- विद्यार्थियों में अभिव्यक्ति क्षमता के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है ।
- अध्यापन संबंधी कौशलों के विकास की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
- सभी विद्यार्थी क्रियाशील रहते हैं।
- दूसरों की गलतियों से सीखने का अवसर प्राप्त होता है।
- अपनी गलतियों को तत्काल दूर करने का अवसर प्राप्त होता है।
- निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण विधि है।
- इस विधि से कमजोर बच्चे भी शिक्षण करना सीख जाते हैं।
- तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है।
- आत्म-प्रतिपुष्टि के लिए टेप-रिकॉर्डर, वीडियो रिकॉर्डर, कैमरा आदि उपकरणों का भी उपयोग होता है।
- शिक्षण कौशलों का विकास सरलता से हो जाता है।
- विद्यार्थियों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- अनुशासनहीनता संबंधित समस्या नहीं पाई जाती है।
- प्रशिक्षण देने की उपयोगी विधि है।
- बाल केंद्रित विधि व मनोवैज्ञानिक भी है।
सूक्ष्म शिक्षण के दोष-
- विद्यार्थियों में विवाद होने का भय बना रहता है।
- भारत में इस विधि के वास्तविक स्वरूप का प्रयोग कर पाना संभव नहीं है।
- खर्चीली विधि है।
- एक बार में एक विद्यार्थी को सिखाया जाता है अतः समय अधिक लगता है।
- योग्य एवं अनुभवी अध्यापक की आवश्यकता होती है।
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