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दल शिक्षण विधि / टोली शिक्षण विधि | Team Teaching Method

 दल शिक्षण विधि / टोली शिक्षण विधि | Team Teaching Method - डेविड वार्डिंग, अमेरिका

TEAM TEACHING METHOD


विस्तार- दल शिक्षण का सबसे पहले प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ के समय अमेरिका में सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिए 1939 ई. में किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में दल शिक्षण का सबसे पहले प्रयोग अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड वार्डिंग ने 1955 में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में किया तथा इस विधि का नामकरण किया गया अतः इन्हें दल शिक्षण विधि का जनक कहते हैं।

डेविड वार्डिंग- " जब दो या दो से अधिक अध्यापक मिलकर के एक ही शैक्षिक स्तर के विद्यार्थियों की किसी विशिष्ट समस्या का समाधान करते हैं तो उस दिन तक शिक्षण करते हैं।"

दल शिक्षण में अध्यापकों का दल होता है जिसका चयन निम्न तीन प्रकार से किया जाता है।

  1. एक ही विद्यालय के अलग-अलग विषयों के अध्यापक।
  2. अलग-अलग विद्यालयों के एक ही विषय के अध्यापक।
  3. अलग-अलग विद्यालयों के अलग-अलग विषय के अध्यापक।
दल शिक्षण में कुल 3 शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है।

1. व्याख्यान विधि 
2. प्रश्नोत्तर विधि 
3. समस्या समाधान विधि


 दल शिक्षण ( अवधि 3 घंटे ) 

1. आम सभा सत्र 2. लघु सभा सत्र 3. प्रयोगशाला सत्र     
(1) अवधि 90 मिनट(1) अवधि - 45 मिनट    (1) अवधि - 45 मिनट
(2) विद्यार्थी संख्या - सभी (2) विद्यार्थी संख्या- 10-12    (2) विद्यार्थी संख्या- 25
(3) अध्यापक संख्या - सभी (3) अध्यापक संख्या- 01    (3) अध्यापक संख्या- 02
(4) उपयोगी - (A) सामान्य से अधिक (B) बौद्धिक स्तर के लिए (C) प्रतिभाशाली के लिए (4) उपयोगी- कमजोर मंदबुद्धि बालक    (4) उपयोगी- सभी के लिए
(5) समस्यात्मक हल - सामूहिक हल (5) समस्यात्मक हल - व्यक्तिगत हल    (5) समस्यात्मक हल- मूल्यांकन किया जाता है।

1. आम सभा सत्र - यह दल शिक्षण का वास्तविक शिक्षण है जिसमें मुख्य अध्यापक व्याख्यान प्रस्तुत करता है और अन्य विषय से संबंध स्थापित होने पर संबंधित अध्यापक को बुलाता है। इस प्रकार है एक-एक करके सभी अध्यापक व्याख्यान प्रस्तुत करते हैं विद्यार्थी प्रश्नोत्तर विधि से अपनी समस्याओं का समाधान करते हैं।

2. प्रयोगशाला सत्र-  प्रदान किए गए ज्ञान की सत्यता की जांच करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रत्येक अध्यापक एक एक प्रश्न बोलता है जिसका उत्तर विद्यार्थी लिख कर देते हैं।

दल शिक्षण के सोपान तीन होते हैं 
  1. प्रकरण का चयन 
  2. व्यवस्था/ क्रियान्वयन 
  3. मूल्यांकन
दल शिक्षण के गुण :-
  • विद्यार्थियों को व्यापक ज्ञान प्राप्त होता है।
  • प्रत्येक अध्यापक का अपना पृथक-पृथक महत्व होता है। 
  • एक से अधिक क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • विद्यार्थियों को विषय विशेषज्ञों से सीखने का अवसर मिलता है।
  • प्रत्येक विद्यार्थी की समस्याओं का समाधान किया जाता है।
  • सभी मानसिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपयोग की विधि है।
  • प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
  • निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण विधि है।
  • बाल केंद्रित विधि है।
  • मनोवैज्ञानिक विधि है।

दल शिक्षण के दोष:-
  1. खर्चीली विधि है।
  2. दल का गठन करना बहुत कठिन कार्य है।
  3. कक्षा 6 से लेकर उच्च स्तर के लिए उपयोगी है अर्थात प्राथमिक स्तर पर उपयोगी नहीं है। 
  4. समय अधिक लगता है।
  5. योग्य एवं अनुभवी अध्यापक की आवश्यकता होती है।

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