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मेरी बस की यात्रा | My travel of Bus

मेरी बस की यात्रा | My travel of Bus 

My travel by bus


 होली का त्यौहार आने वाला था । कुछ दिन बाकी है यह मान लो एक या दो दिन के बाद होली का त्यौहार आने वाला था। मैं भी घर जाने के लिए उत्सुक था। आज शनिवार का दिन था सुबह स्कूल जाने से पहले मैंने सारी तैयारियां कर ली। जल्दी उठा, बैग में कपड़े जमा लिए क्योंकि मुझे आज कोटा जाना था। उससे पहले मुझे स्कूल भी जाना था तो मैंने जल्दी खाना बना लिया था। और मैं खाकर तैयार हुआ। उसके बाद मैंने अपना बैग जमा जमा रहा था तो मेरे मन में विचार चल रहे थे कि आज मैं कोटा जाऊंगा तो किससे जाए मोटरसाइकिल से या बस से तो इतने में ही विचार आया कि एक बार मम्मी से पूछ लेते हैं कि किस से आए तो मैंने मम्मी को कॉल किया और पूछा कि मैं बाइक से आऊं या बस से, मम्मी ने बोला की बेटा आज तो मौसम खराब है तो बाइक लेकर मत आना और बस से ही आ जाना क्योंकि तुझे यहां से अपने बच्चे और बीवी को भी लेकर जाना है तुम बाइक लेकर मत आना। 

मैंने मम्मी की बात मान ली और मैंने फोन कट कर दिया । उसके बाद में स्कूल के लिए रवाना हो गया। स्कूल जाने के बाद मैंने बच्चों को पढ़ाई कराई और बच्चों को होली के त्यौहार के बारे में बताया कि हम होली का त्यौहार क्यों मनाते हैं तो जब मैंने बच्चों से होली के त्यौहार की कथा के बारे में बताया तो सब ने मुझसे कहा सर हमें भी सुननी है यह कहानी तो मैंने कहा आप इसको ध्यान पूर्वक सुनना। वह ध्यान पूर्वक सुने लगे। "एक बार की बात है जब भगत प्रहलाद भगवान विष्णु की आराधना करते थे लेकिन यह बात उनके पिताजी को अच्छी नहीं लगती थी। वह अपने पुत्र को भक्ति करने के लिए मना करते थे। यह बार-बार घटनाएं घटी। 

एक दिन हिरण्यकश्यप ने उनकी बहन होली से कहा की तुम मेरे पुत्र को अपनी गोदी में लेकर अग्नि में बैठना। उनकी बहन को अग्नि देव से कोई हानि नहीं थी। क्योंकि अग्नि उसको नहीं जला सकती थी । इस प्रकार का वरदान था। लेकिन जब वह भगत प्रहलाद को लेकर वह अग्नि में बेटी तो होलिका का शरीर जलाने लगा ओर वह थोड़ी देर में स्वाह हो गई । " बुराई पर अच्छाई की जीत की इस कथा के आधार पर ही हम होली का त्यौहार मनाते हैं। भगत प्रहलाद की भक्ति को लाखों वर्षों से त्योहार के रूप में मनाते आ रहे हैं। 

जब मैं विद्यालय से कंप्लीट होकर अपने साथी मित्र गणेश के साथ अकलेरा तक बाइक से आया। अकलेरा से बस में चढ़ा। मुझे बस से यात्रा करना बहुत ही आनंद में लगता है इसलिए मैं ज्यादातर बस से ही यात्रा करता हूं। बस में सीट पर बैठा हुआ था थोड़ी देर हुई। टिकट कंडक्टर घूमता हुआ टिकट टिकट टिकट करते हुए आया और मुझसे टिकट के बारे में पूछा सर आपका टिकट हो गया। मैंने कहा नहीं और मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और ₹500 का नोट निकालकर कंडक्टर को दिया। जैसे मैंने 500 का नोट दिया कंडक्टर ने मुझे ₹250 वापस दे दिए मैं कंडक्टर की तरफ थोड़ी देर तक देता रहा मैंने और कुछ नहीं बोला, वह आगे की सीट पर टिकट लेने के लिए चला गया। टिकट कंडक्टर को भी पता था कि मुझे भाई साहब को और पैसे देने हैं और मुझे भी पता था कि उनको अभी और पैसे देना है। तो मैं उनकी तरफ ध्यान से देखता रहा कुछ नहीं बोला। आगे की सवारी मेसे किसी ने उनको एक सौ का नोट निकाल कर दिया और मेरी तरफ देखते हुए कहा भाई साहब आपके सो रुपए । मैंने उनसे ₹100 ले लिए और अपने पर्स में रख लिऐ। 

उसके बाद मैंने मोबाइल व ब्लूटूथ निकाला और मैंने गाने चालू कर लिए। मेरे सामने वाली सीट पर एक लड़की आ कर बैठ गई और उसके ही बगल में एक आदमी आकर खड़ा हो गया उसके पास दो बैग थे। एक छोटा और एक बड़ा वह थोड़ी देर खड़ा रहा और मुझसे कहने लगा, भाई साहब आप थोड़ा एडजस्ट हो सकते हो । पहले मैंने कुछ नहीं कहा मैं थोड़ा सा खिसक गया। वह मेरे पास आकर बैठ गए। बस चलते रही। वह झालावाड़ को पार कर चुकी थी थोड़ी देर बाद उसने बस के ऑफिस में फोन लगाया और कहा कि मुझे एक सीट की व्यवस्था कीजिए पास ही में टिकट कंडक्टर से ऑफिस वाले की बात करवाई। उनके बीच जाने क्या बात हुई मुझे पता नहीं । 

उसके बाद टिकट कंडक्टर मेरे पास से चला गया। थोड़ी देर बाद मेरे पास वापस लौट के आया और मुझसे कहा आप यहां से उठा जाइए, आपको मैं दूसरी जगह बैठा दूंगा। इनको यहां बैठ जाने दीजिए। मैं उसकी बात मानकर मैं वहां से उठ गया और मुझसे कहा कि आप उस वाले शयन कक्ष में चले जाइए। वहां पर एक आदमी पहले से ही बैठा हुआ था जिसके लंबी मूछे थी। मैं उसकी मानसिकता देखकर उसके पास पर नहीं बैठा। मैं बस की गैलरी में ही खड़ा रहा। जब मैं खड़ा था उसकी साइड वाली सीट पर एक लड़की बैठी हुई थी। 

मैं उसको कभी कबार जो फोन पर बातें कर रही थी तो मैं उसकी बातें थोड़ी बहुत भी नहीं सुन पा रहा था लेकिन मैं देख रहा था कि वो क्या कर रही है उसके हावभाव को देख रहा था। मेरे मन में ऐसे कोई विचार नहीं थे कि वह कौन है क्या है कैसी है मैंने सोचा वह अपने मम्मी, पापा, दोस्त या किसी और से बात कर रही होगी बल्कि कुछ ओर नहीं सोचा। बस चलती रही, जो आदमी मेरी सीट पर आकर बैठा था । मैं उसको देखता रहा कि आज की दुनिया में भी ऐसे व्यक्ति होते हैं जो दूसरों की परवाह नहीं करते हैं, वह केवल अपनी परवाह करते हैं। मुझे उस आदमी पर कोई गुस्सा नहीं था कि उसने मेरी सीट पर कब्जा कर लिया था। 

बस मैं यह सोच रहा था कि जब मैंने उसको अपने पास बिठाया तो मुझसे पूछना उसका फर्ज था कि भाई साहब आप भी मेरे पास बैठ जाइए आपने मुझे भी बैठने दिया है लेकिन नहीं ऐसा नहीं हुआ और मैं आधे रास्ते से कोटा तक बस में खड़ा खड़ा आया। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि किसी भी व्यक्ति के अंदर की इंसानियत उस समय कहां चली जाती है जब उसको आराम मिल जाता है। केवल अपने बारे में ही सोचता है यही मेरे साथ हुआ और थोड़ी देर में बस कोटा पहुंच गई । 7:30 pm का टाइम था । 

जब मैं बस से उतरा उतरने के बाद मेरे पास कोई साधन नहीं था कि मैं वहां से अपने घर चला जाऊं। मैंने थोड़ी देर इधर-उधर देखा कोई साधन नहीं मिल रहा था तो मैंने लिफ्ट लेने के लिए हाथ खड़ा किया। एक या दो बाइक नहीं रुकी लेकिन अंत में एक बाइक वाले ने मुझे लिफ्ट दे दी और मैं उनके साथ बैठकर हरे कृष्ण मंदिर तक आ गया। बाईपास रोड से घर तक गाने सुनते हुए, घूमते घूमते घर पहुंच गया। यह थी मेरी बस की यात्रा। अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो मेरी पोस्ट को लाइक शेयर जरूर करें और कमेंट करना ना भूले।

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